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________________ 90 Vaishali Institute Research Bulletin No. 4 आचार्य जिनसेन (शक संवत् ७७०) कृत संस्कृत आदिपुराण के १६-१७ वे पर्व में बाहुबली का वर्णन मिलता है। कथा के आरम्भ में बताया गया है कि बाहुबली का जन्म ऋषभदेव की दूसरी रानी सुनन्दा से हुआ। वे कामदेव होने के कारण अत्यन्त सुन्दर एवं पराक्रमी थे। योग्य होने पर उनका राजतिलक कर दिया गया। इसके बाद पुनः ३५वें एवं ३६वें पर्व के ४६१ श्लोकों में भरत एवं बाहुबली के ऐश्वर्य तथा वैभव का वर्णन है। बाहुबली द्वारा भरत की अधीनता स्वीकार नहीं किये जाने पर भरत अपनी विजय को अपूर्ण समझते हैं । अतः वे बाहुबली के पास अपने दुत के द्वारा प्रभुत्व स्वीकार कर लेने सम्बन्धी सन्देश भेजते हैं । किन्तु वे उसे अस्वीकार कर युद्धभूमि में निपट लेने को ललकारते हैं। भरत एवं बाहुबली युद्ध में भिड़ने की तैयारी करते हैं और निरपराध मनुष्यों को संहार से बचाने के लिए वे धर्मयुद्ध प्रारम्भ करते हैं। उनके बीच जलयुद्ध, दृष्टियुद्ध एव बाहुयुद्ध होता है। इन तीनों युद्धों में जब भरत पराजित हो जाते हैं, तब वे बाहुबली पर चक्ररत्न का वार करते हैं। इस अनैतिक एवं अमर्यादित कार्य से बाहुबली को बड़ा दुःख होता है। उन्हें ऐश्वर्य एवं भोगलिप्सा के प्रति घृणा उत्पन्न हो जाती है। अत: वे वैराग्य धारण कर कठोर तपश्चर्या करते हैं और कैवल्य की प्राप्ति करते हैं । आदिपुराण में चित्रित बाहुबली का उक्त चरित हो सर्वप्रथम विस्तृत, सरस एवं काव्य-शैली में लिखित बाहुवली-चरित माना जा सकता है। कवि ने परम्परा प्राप्त सन्दर्भो को विस्तार देकर कथानक को अलंकृत एवं सरस बनाया है। महाकवि जिनसेन का समय विवादास्पद है, किन्तु कुछ विद्वानों के अनुसार उनका काल ई० सन् ६९२ के आसपास माना जा सकता है ।२ जिनसेन की अन्य कृतियों में पार्वाभ्युदय वर्धमानपुराण एव जयधवलाटीका प्रसिद्ध है। कृतियों के क्रम में आदिपुराण उनकी अन्तिम रचना थी। इसमें कुल ४७ पर्व हैं, जिनमें आरम्भ के ४२ एवं ४३वें पर्व के प्रथम ३ श्लोक की रचना करने के बाद उनका स्वर्गवास हो गया। अत: उसके बाद के शेष पर्वो के १६२० श्लोकों की रचना उनके शिष्य गुणभद्र ने की थी। महाकवि पुष्पदन्त ने अपने अपभ्रश महापुराण में “नामेय चरित प्रकरण" में बाहुबली के चरित का अंकन मर्मस्पर्शी-शैली में किया है उसकी पाँचवीं सन्धि में जन्मवर्णन करके कवि ने १६वीं से १८वीं सन्धि तक बाहुबली का वर्णन जिनसेन के आदिपुराण के अनुसार ही किया है। हाँ पुष्पदन्त की वर्णन-शैली जिनसेन की वर्णन-शैली से अधिक सजीव एवं सरस बन पड़ी है। पुष्पदन्त ने भरत-दूत एवं बाहुबली के माध्यम से जो मर्मस्पर्शी-संवाद प्रस्तुत किये हैं तथा सैन्य-संगठन, सैन्य-संचालन तथा उनके पारस्परिक युद्धों १. भारतीय ज्ञानपीठ (काशी १९६३-६८) से प्रकाशित । २. दे० पद्मपुराण-प्रस्तावना, पृ० २१ ।। ३. दे० पद्मपुराण-प्रस्तावना.५० २१ । ४. भारतीय ज्ञानपीठ (दिल्ली १९७९ ई०) से प्रकाशित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522604
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1983
Total Pages288
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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