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________________ 84 Vaishali Institute Research Bulletin No. 4 था। निजी-संपत्तिवालों ने उसको देवता की कृपा कहकर विषमता को भी जौचित्यपूर्ण घोषित करने की चेष्टा की। ऐसी परिस्थिति में देवताओं के अस्तित्व के तर्क को खंडित करना निहित स्वत्ववालों के लिए बड़ा घातक होता। इसीलिए देवताविहीन लोगों को दुष्टतापूर्ण कहा गया । यह सब कुछ निजी संपत्ति की मात्रा के बढ़ते जाने के कारण उत्पन्न तनाव के शिथिलीकरण के लिए किया गया प्रतीत होता है । १०८ इस तरह शत्रुओं के खिलाफ व्यक्त ग्रंथि एवं घृणा, स्वजनों के विरुद्ध अविश्वास और संदेह, आन्तरिक कलह, स्वहित साधने के लिए संरचित समूहों के कारण हुए सामाजिक विभाजन, उच्च-निम्न की भावना, निजी संपत्ति की जड़ का गहरा होना, अतुल संपत्ति एकत्र करने तथा आर्थिक मूल्यों को जमा करने के लिए कीमती धातुओं का प्रयोग, महिला का निजी संपत्ति के रूप में देखा जाना, धनार्जन में साध्य-साधन की समस्या, देवता-विहीनता के खिलाफ घृणा, दैनन्दिन जीवन में देवताओं की भूमिका की धारणा, ये सभी तथ्य हितों के टकराव तथा परिणामस्वरूप उत्पन्न तत्कालीन उन भौतिक प्रवृत्तियों की ओर संकेत करते हैं, जिनमें ऋग्वेद-जैसे ग्रंथ की रचना हुई। १०८. पूर्व-वैदिक निजी संपत्ति के विषय में विचार करते हुए प्रो० रामशरण शर्मा ने कहा है कि इस काल में वस्तुतः व्यापार के अभाव के कारण निजी संपत्ति के संग्रह तथा सामाजिक असमानता की परिस्थिति पैदा नहीं हुई। "फॉम्स ऑफ प्रोपर्टी", ऊपर, पृ० 100 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522604
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1983
Total Pages288
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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