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________________ मलय सुन्दरीचरियं की प्राकृत पाण्डुलिपियों $1 ख- प्रति इसमें कुल ३४ पन्ने हैं । इसमें प्रारम्भ में "श्री सीमंधरस्वामिने नमः" लिखा हुआ है तथा अन्त में प्रशस्ति इस प्रकार है--- ग-प्रति अन्त प्रारम्भ 1 " इति मलय सुन्दरीकथा समाप्ता ॥ संवत् १५४६ वर्षे श्री भूमिदाने वाचनाचार्य श्री समव्यजगणि शिष्य पं० कल्याणलाभगणि ज्ञानमंदिर मुनिलिषितं स्वपुन्यार्थेन वाचनार्थं । श्रीर्भवृज | ग्रन्थाग्र १३०० ।। इन तीनों प्रतियों की भाषा महाराष्ट्री प्राकृत है । किन्तु उसमें क्षेत्रीय भाषा का भी प्रभाव है। पूरे ग्रन्थ के सम्पादन के समय अन्यान्य पक्षों पर अधिक प्रकाश पड़ सकेगा । यहाँ तीनों प्रतियों के प्रारम्भ और अन्त को कुछ गाथाओं का पाठभेद सहित मूलपाठ प्रस्तुत है । ॥ ॐ नमो वीतरागाय ॥ प्रारम्भ उसभाईवीरं वंदिय तित्थेसरे' गुरुजणे अ' । वुच्छामि मलय सुंदरिचरियं सिरिपासतित्थगयं ||१|| जहसग गहरेणं संखपुरे संखनिवपुरे वृत्तं । तह मणियवं जहां" संवेगो हवइ सुताणं ॥२॥ संवेगग कुकमं विहडइ न णु होइ पुन्न पब्भारो । तो भणियमागमेयं अवहियचित्ता निसामेह ||३|| तो मलयसुन्दरीए जह सीलं पालियं महावसणे २ । कायव्यं । ९ ११ तह पालियव्वा महि' महबलव्व खंती विहेव्व ॥१३०० ॥ जह दोहिवि तिव्ववयं कयं तह परेहि इथं जह पर भवेइ मेहि" साहु आसाइउ "" न तहा ॥ १ ॥ ईय मलयसुंदरीए महासईए पयासियं चरियं । वेरग्गरंगऊ पायरिया १४ भव्वाण" ॥२॥ जं किंचि मएवि तहं परूवियं ६ इत्थ मंदवोहे " । तं सोहियंतु सुयणा परोवयारिक्कलीणमणा ||३|| अन्त इसमें ४२ पन्ने हैं । यह आधुनिक प्रति है, जो सं० १९६५ में जोधपुर में लिखी गयी है । प्रति के अन्त में लिखा है- इति श्री मलयसुन्दरी महासतीकथा समाप्ता । लि० —— श्रीयुत् लक्ष्मीनारायण गेरमल रेहासी जोधपुरना । संवत् १९६५ वैशाखबदी १ ।। १. श्री भीमंधर स्वामिने नमः (ग), २. तित्थसरे ( ख ), ३. य ( ख ), ४. निवपुरो ( क ), ५. जम्हा ( ख ) ६. संवेगउ ( ख, ग ), ७. कुकम्मं ( ख ) । १. पालिऊणं ( ख ), २. यं महावसणे ( ख ), पालियव्वत (ग), ४. मिहं ( ख ), मेहि (ग) ६. ।।९२।। (ग), ७. त (ग), ८. इच्छ (ग), १०. महिं (ख), ११. आसासिउ ( ग ), १२. इय (ख), १४. पमाविरयाण ( ग ), १५. भव्वाणे ( ग ), १७. मदवोहेण (ग) १८. सोहयंव्व ( ग ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only ५. ३. पालियव्व ( ख ), विहेयव्वा ( ख, ग ), ९, परिभावेइ ( ख ), १३. एयासियं (ग), १६. परूविअं ( ग ), www.jainelibrary.org
SR No.522604
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1983
Total Pages288
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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