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Vaishali İnstitute Research Bulletin No. 3 १०-भोग्यरूप नियोग । ११-पुरुष नियोग ।
शुद्ध कार्य नियोग :-प्रभाकर ने वेद-वाक्य का अर्थ शुद्ध कार्य नियोग माना है। उनका तर्क है कि लिंग, लोट् और तव्य प्रत्यय का अर्थ अग्निहोत्रादि विशेषणों से रहित निरपेक्ष शुद्धरूप प्रतीत होता है और यह कार्य रूप है । अतः नियोग का अर्थ शुद्ध कार्य है ।
शुद्ध प्रेरणा नियोग :-दूसरे नियोगवादियों ने शुद्ध प्रेरणा को नियोग कहा। क्योंकि, जिसको प्रेरणा मिलती है, वही यज्ञादि करने में प्रवृत्त होता है और जो पुरुष प्रेरित नहीं होता, वह यज्ञादि करने में प्रवृत्त नहीं होता, क्योंकि यह अपने को नियुक्त हुआ नहीं समझता ।
- प्रेरणा सहित कार्य नियोग :-नियोगवादियों का दूसरा सम्प्रदाय प्रेरणा-सहित कार्य को नियोग मानता है। उनका मन्तव्य है कि न तो शुद्ध प्रेरणा मात्र नियोग है और न केवल शुद्ध कार्य ही नियोग है। जबतक किसी व्यक्ति को पहले यह ज्ञान नहीं हो जाता है कि यह मेरा कार्य है, तबतक वह वाक्य उस व्यक्ति के लिए यज्ञादि कार्य की सिद्धि में प्रेरक नहीं हो सकता। किन्तु जिस समय व्यक्ति को यह मेरा कार्य है, इस प्रकार का पहले ज्ञान हो जाता है, तभी वह वाक्य उस व्यक्ति के लिए अपने कार्य की सिद्धि हेतु यज्ञादि कर्म का प्रेरक हो सकता हैं ।
कार्यसहित प्रेरणा नियोग :-कार्यसहित प्रेरणा नियोग माननेवाले नियोग का स्वरूप प्रतिपादित करते हुए कहते हैं कि कार्य बिना कोई भी व्यक्ति यज्ञादि करने में प्रेरित नहीं किया जाता है । इस लिए कार्यसहित प्रेरणा ही नियोग है।
कार्यउपचार नियोग :-कार्य को उपचार से प्रवतर्क मान कर उसे नियोग मानने वाले प्रभाकर मतानुयायी मीमांसकों का सिद्धान्त है कि वेद-वाक्य का व्यापार-याग प्रेरणा का विषय कार्य (प्रवर्तक) है, किन्तु यह स्वतः-प्रेरक नहीं है। वेद-वाक्य का जो व्यापार है, उसे यागादि कार्य रूप प्रमेय में प्रमाण का व्यापार उपचारित किया जाता है।
कार्य प्रेरणा सम्बन्ध नियोग :---कार्य (याग) और प्रेरणा (वेद-वाक्य) के सम्बन्ध को नियोग कहनेवाले नियोगवादी का कथन है कि कार्य के बिना प्रेरणा और १. वाक्यान्तर्गत कर्माद्यवयवोपेक्षारहिता।
अष्टसहस्त्री, पाद-टिप्पणी, पृ० ६ । २. अष्टसहस्री, पृ० ६, श्लोक ४
(ख) तत्वार्थ श्लोकवार्तिक, पृ० २६१, कारिका ९८ । ३. वही, श्लोक ५, (ख) वही, का० ९८ ४. (क) वही, श्लोक ६, (ख) वही, का० १०० ५. (क) वही, श्लोक ७, (ख) वही, का० १०१।
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