________________
___37
आचार्य विद्यानन्द का एक विशिष्ट चिन्तन इस प्रकार हम देखते हैं कि वेदवाक्य के अर्थ के विषय में वेद को अपौरुषेय माननेवालों के बीच आपस में ही विवाद' है ।
नियोगवादी प्रभाकर श्र तिवाक्य का अर्थ नियोग मानते हैं। उनका मत है कि “अग्निष्टोमेन यजेत स्वर्गकामः" इत्यादि श्रुतिवाक्य के अन्तर्गत आये हुए हैं । "तिप" आख्याति का अर्थ नियोग है। दूसरे शब्दों में विधिलिंग "यजेत", लोट प्रत्यय "यज्जताम्" और तव्य प्रत्यय “यष्टव्य" का अर्थ प्रभाकर मत में नियोग है।
नियोग का अर्थ :-नियोग शब्द नि+योग से बना है। "नि" का अर्थ निरवशेष और योग का अर्थ मन, वचन और काम की प्रवृत्ति है । अतः यज्ञादि करने में पूर्णरूप से एकाग्रतापूर्वक तत्पर होना नियोग शब्द का व्युत्पत्य अर्थ है । यज्ञ-कर्ता जब श्रुतिवाक्य का अर्थ सुनता है, तब समझता है कि उक्त वाक्य ने मुझे यज्ञ करने की प्रेरणा दी है। अतः प्रेरक होने के कारण नियोग ही श्रुत-वाक्यार्थ है, भावना या विधि नहीं।
नियोग के भेद :-प्रभाकर मत में नियोग के अनेक अर्थ किये जाने के कारण उनके अनुयायियों ने विभिन्न नियोगों का प्रतिपादन किया है। अतः प्रवक्ताओं के विचार-भेद के कारण नियोग निम्नांकित ग्यारह प्रकार के हैं :---
१--शुद्ध कार्य नियोग। २-शुद्ध प्रेरणा नियोग । ३-प्रेरणा सहित कार्य नियोग । ४-कार्य सहित प्रेरणा नियोग। ५–कार्य उपचार नियोग । ६—प्रेरणा कार्य-सम्बन्ध नियोग । ७-प्रेरणा कार्य समुदाय नियोग । ८--- कार्य प्रेरणा स्वभाव विनिर्मुक्ति नियोग । ९-यन्त्रारूढ़ नियोग।
१. भावना यदि वाक्यार्थों नियोगो नेति का प्रभा।
तावुभौ यदि वाक्यार्थो हतौ भट्ट प्रभाकरा विति ।। कार्येर्थे चोदनाज्ञानं स्वरूपे किन्च तत्प्रभा । द्वयोश्चेद्धन्त तौ नष्टौ भट्टवेदान्तवादिना विति ।। अष्टसहस्री, (निर्णय सागर), पृ० ५।
देखें, अष्टसहस्री, पृ० ५ पर की पाद-टिप्पणी । ३. नियुक्तो हमनेनाग्निष्टोमादि वाक्येनेति निरवशेषो भोज्यो हि नियोगस्तत्र
मनागप्ययोगस्य सम्भवाभावात्..."। वही, पृ० ५।
तत्वार्थ श्लोक वार्तिक, पृ० २६१ । ४. अष्टसहस्री, पृ०६।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org