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बज्जिगणराज्य : पालि साहित्य के आलोक में प्रारम्भ में निस्सन्देह अत्यन्त परिश्रमी एवं उद्यमशील रहे होंगे। किन्तु सम्पन्नता के पश्चात् उनका आराम-तलब हो जाना सम्भव है। अतः निकायों में उनके विलासी होने के संकेत के साथ ही युवती के लिए आपस में विवाद के स्वाभाविक उदाहरण भी उपलब्ध हैं। इन स्वाभाविक कारणों के साथ ही अकाल एवं महामारी भी उनकी शक्ति एवं उत्कर्ष में ह्रास के लिए कम जिम्मेदार नहीं हुए।
इस प्रकार वज्जि जनपद, उसकी राजधानी वैशाली एवं वहां के निवासी लिच्छवियों का बौद्धधर्म और संघ के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है । वैशाली को बौद्ध भिक्षुणी संघ के उद्भव-स्थल होने का गौरव तो प्राप्त है ही, साथ ही महालि, महासीहनाद, चूलसच्चक, महासच्चक, वच्छगोत्त, सुनरवन्त तथा रतन जैसे महत्त्वपूर्ण सुत्तों का उपदेश भी बुद्ध ने वैशाली में ही किया। इनके अतिरिक्त विनय के अनेक नियमों के प्रज्ञापन का श्रेय वैशाली को ही प्राप्त है। इतना ही नहीं, बल्कि यहाँ तक कि बुद्ध के महापरिनिर्वाण के एक सौ वर्ष बाद होनेवाली द्वितीय बौद्ध-संगीति का स्थल भी यही रहा। हालां कि इस प्रसंग में बौद्ध भिक्ष संघ में भेद डालने का कलंक वज्जिपुत्तक भिक्षुओं पर मढ़ा जाता है, किन्तु ऐसा लगता है कि वज्जित्तक भिक्षुओं की केवल संख्या ही अधिक नहीं थी, बल्कि उनका प्रभाव भी अति प्रबल था। उनके इस प्रभाव के कारण ही संघ के तत्कालीन महास्थविरों ने वैशाली में संगीति कर उन्हें अपने विचारों को वापस लेने के लिए विवश करना चाहा, जिसमें वे सफल नहीं हो सके । निराश होकर उनपर संघभेद का दोष मढ़कर वे लोग ही उनसे अलग हो गये। यही कारण है कि अन्य स्रोतों से इस घटना की पुष्टि नहीं होती है।
संकेत
नवनालन्दा महाविहार, नालन्दा से प्रकाशित सुत्तपिटक एवं विनयपिटक के ग्रन्थों का उपयोग किया गया है, जिनकी सूची इस प्रकार है
अ०-अट्ठकथा अं०नि०-अगुत्तर निकाय खु०नि०-खुद्दक निकाय दी० नि०-दीघ निकाय म. नि०-मज्झिम निकाय सं० नि०-संयुत्त निकाय
१. २.
सं० नि०, भाग-२, पृ० २२३ । धम्मपद-अ०, भाग-३, पृ० २८० ।
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