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प्राकृत और संस्कृत का समानान्तर भाषिक विकास
_ डॉ० श्रीरंजन सूरिदेव
.. यह सर्वविदित है कि प्राकृत-भाषा ने मध्ययुग में प्रचुर जनसम्मान अर्जित किया। आधुनिक विद्वानों ने प्राकृत के सम्बन्ध में इस पक्ष का समर्थन किया है कि यह भाषा संस्कृत से नहीं उत्पन्न हुई, अपितु प्रकृति के नियमानुसार यह स्वयं सर्वप्रथम आविर्भूत हुई। क्योंकि, 'प्राकृत' नाम ही इस बात को स्वयं संकेतित कर देता है । आधुनिक विद्वानों का यहाँ तक कहना है कि संस्कृत ही प्राकृत का संस्कार-सम्पन्न रूप है।
किन्तु, आचार्य हेमचन्द्र सूरि के कथन से उक्त तथ्य खण्डित हो जाता है । आचार्य सूरि ने मूल भाषा संस्कृत से प्राकृत का उद्भव मानते हुए यह स्पष्ट स्वीकार किया है कि 'प्रकृतिः संस्कृतम् तत आगत प्राकृतम्' अर्थात्, मूल प्रकृति संस्कृत से ही प्राकृत का अविर्भाव हुआ। सच पूछिये, तो आधुनिकों की इस धारणा कि में 'प्राकृत संस्कृत-भाषा से भी प्राचीन है', किसी सबल प्रमाण की दृढ़ता नहीं है। इसलिए कि संस्कृत-निबद्ध वेद से प्राचीन कोई भी प्राकृतनिबद्ध कृति उपलब्ध नहीं। इसके अतिरिक्त, साधारण बुद्धिवाले भी मोटे तौर पर यह जानते हैं या जान सकते हैं कि प्राकृत-भाषा में संस्कृत का मूलाधार स्पष्ट है । और, यही कारण है कि प्राकृत के अनेक शब्दानुशासन संस्कृत में लिपिबद्ध हुए हैं । भरत मुनि का 'नाट्यशास्त्र' ऐसा ग्रन्थ है, जितके सत्रहवें अध्याय में, विभिन्न भाषाओं के निरूपण के क्रम में, ६-२३ वें पद्य तक प्राकृत-व्याकरण के सिद्धान्त निर्दिष्ट हुए हैं और बत्तीसवें अध्याय में उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं। परन्तु, भरत के ये अनुशासन सम्बन्धी सिद्धान्त इतने संक्षिप्त और अपरिस्फुट हैं कि इनका उल्लेख केवल भाषागत ऐतिहासिक उपयोगिता को ही सिद्ध करता है ।
संस्कृत-प्राकृत का पारस्परिक सम्बन्ध :
तत्त्वतः संस्कृत और प्राकृत का सहभाव सनातन है। प्राकृत के गद्य या पद्य की जो अवतारणा संस्कृत में होती है, उसे 'छाया' नाम से सार्वकालिक प्रसिद्धि प्राप्त है। अतएव, यह सहज ही अनुमेय है कि संस्कृत और प्राकृत में छाया-मात्र का अन्तर है। इससे इस बात का सहज ही निरास हो जाता है कि प्राकृत की छाया पर संस्कृत उत्पन्न हुई। प्रत्युत, इससे तो यही सुस्पष्ट होता है कि संस्कृत की छाया से ही प्राकृत की उत्पत्ति हुई। इसलिए, यदि यह कहा जाय कि प्राकृत संस्कृत की ही 'छाया-भाषा' है, तो अत्युक्ति नहीं होगी। अथवा, ऐसा भी कहा जा सकता है कि संस्कृत और प्राकृत में काया-छाया का संबंध है।
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