SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Vaishali Institute Research Bulletin No. 3 . शौरसेनी, शूरसेन (जो क्षेत्र वर्तमान मथुरा के चतुर्दिक है) की, अर्धमागधी, मगध के भर्धभाग (जो करीब इलाबाद के समीप है) की तथा मागधी पूरे मगधदेश की भाषा पी। पिशाच एक सांस्कृतिक नाम है। भारतीय वैयाकरणों तथा साहित्य-शास्त्रियों को संभवतया इसका पता नहीं था, इस कारण उन्होंने इसे भूत-पिशाचों की भाषा कहा। किन्तु, अब जार्ज ग्रियर्सन तथा अन्यान्य विद्वानों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि भारत के सुदूर उत्तरपश्चिम (पंजाब के आसपास) में पिशाच नामकी जंगली जनजातियाँ थीं, जो इस भाषा का प्रयोग करती थीं। इस प्रकार यह पैशाची नाम इस भाषा को बोलनेवाली जातियों के नाम पर पड़ा। अपभ्रश नाम तो प्रायः वर्णनात्मक है, क्योंकि इसमें बहुत से अपभ्रंश अर्थात् व्याकरण के नियमों से रहित अशुद्ध शब्द तथा उनके रूप प्रयुक्त हुए हैं, व्याकरणनियमबद्ध शब्दों तथा उनके रूपों का प्रयोग कम हुआ है। इस प्रकार यह अपभ्रंश नाम मात्र वर्णनात्मक है, अन्य प्राकृतों के नाम की तरह न तो भौगोलिक है और न सांस्कृतिक ही। इन साहित्यिक प्राकृतों का काल हम ई० स० की पहली शताब्दी से दसवीं शताब्दी तक रख सकते हैं । इसके बाद वर्तमान लोकभाषाओं का प्राचीनरूप प्रारम्भ हो जाता है। इस तरह उपर्युक्त तथ्यों के अवलोकन से हम प्राकृतों का सामान्य परिचय पा जाते हैं। वस्तुतः इन सबों की शब्द एवं रूप आदि सम्बन्धी अपनी अपनी विशेषताएँ भी हैं, जो इन्हें एक-दूसरे से भिन्न अभिहित करती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522604
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1983
Total Pages288
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy