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________________ Vaishali İnstitute Research Bulletin No. 3 महामंत्री वर्षकार ने जो कुछ भगवान बुद्ध से सुना था, उसे अजातशत्रु को कह सुनाया। अजातशत्रु ने सोचा कि राजकोष में इतनी धन-संपत्ति नहीं है, जो वज्जियों को रिश्वत खिलाकर अपने वश में किया जाय । ऐसी हालत में परस्पर भेदनीति का अवलंबन लेकर ही उन्हें परास्त करना ठीक है । योजना पर गंभीरतापूर्वक विचार-विमर्श किया गया। महामंत्री वर्षकार पर झूठमूठ का राजद्रोह का दोषारोपण कर उसका सिर मुंडवाकर उसे नगर से बहिष्कृत करा दिया गया। नगर से बहिष्कृत होकर वह लिच्छवियों की नगरी वैशाली में पहुँचा। अपनी युक्ति-प्रयुक्तियों से उसने शीघ्र ही वहाँ भी महामंत्री का पद प्राप्त कर लिया। वैशाली में महामंत्री पद पर आसीन वर्षकार वज्जियों का न्याय करने लगा और राजकुमार को नीतिशास्त्र की शिक्षा देने लगा। एक दिन अवसर पाकर उसने एक वज्जी को बुलाकर पूछा, "क्या तुम खेती करते हो ?” उसने कहा, "हां।" पास में खड़े हुए एक दूसरे वज्जी ने पहले वज्जी से पता लगाना चाहा कि आचार्य उससे क्या कह रहे थे। उसने उत्तर दिया, "कुछ खास नहीं, यही पूछ रहे थे कि क्या तुम खेती करते हो।" लेकिन दूसरे वज्जी को इस उत्तर से संतोष न हुआ । वह सोचने लगा, "अवश्य इसमें कुछ रहस्य है।" एक दिन वर्षकार ने एक राजकुमार को एकान्त में ले जाकर पूछा, “क्यों राजकुमार, सुना है, तुम निर्धन हो ?” राज कुमार ने पूछा, “महाराज, आप से किसने कहा ?" वर्षकार ने उत्तर दिया, “एक वज्जो कह रहा था।" एक दिन किसी राजकुमार को अलग ले जाकर महामंत्री ने पूछा, "क्यों जी, तुम कायर हो ?" राजकुमार के पूछने पर वर्षकार ने किसी वज्जी का नाम ले दिया। इस प्रकार तीन वर्ष के अन्दर महामंत्री ने अपनी कुशल भेदनीति के द्वारा वज्जीगण में परस्पर ऐसी फूट डलवा दी कि दो वज्जियों ने एक रास्ते से चलना भी बंद कर दिया। एक दिन महामंत्री वर्षकार ने सन्निपात भेरी बजवायी कि सब वज्जी एकत्र हो जायें । लेकिन भेरी सुनकर कोई भी न आया । ___ महामंत्री की कूटनीति काम कर गयी। उसने गुप्त रीति से अजातशत्रु को संदेश भेजकर कहलवा दिया कि शत्रुपर आक्रमण करने का यह सबसे अच्छा अवसर है। अजातशत्रु ने अपने दलबल के साथ वैशाली पर चढ़ाई कर दी। भेरी की घोषणा सुनाई दी कि नगर पर शत्र का आक्रमण रोकने के लिए सब वज्जी एकत्र हो जायें और उसे गंगा पार न करने दें। भेरी सुनकर वज्जी आपस में कहने लगे, "ऐसे अवसर पर शूरवीर लोग ही जायें, हमारे जैसे कायरों का काम नहीं !" कुछ समय बाद दूसरी भेरी की घोषणा की गयी कि शत्रु नगर-द्वार के पास आ गया है, उसे नगर के अन्दर न घुसने देना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522604
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1983
Total Pages288
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size5 MB
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