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प्राचीन जैन शिलालेखों एवं जैन-ग्रंथ प्रशस्तियों में
उल्लिखित कुछ श्रावक-श्राविकाएँ
डॉ० राजाराम जैन जैन-समाज का संगठन चतुर्विध संघीय व्यवस्था के आधार पर किया गया है । जिस समाज में इस प्रकार की व्यवस्था नहीं होती, वह अनुशासन विहीन होकर बिखर जाता है। भ० महावीर ने आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व अपनी दिव्य शक्ति से इस तथ्य का पूर्ण अनुभवकर उक्त पद्धति पर ही उसका गठन श्रेयस्कर समझा था और साधु-साध्वी एवं श्रावक-श्राविका इन चार को चतुर्विध-संघ के अन्तर्गत रखा था। तभी से हमारे यहाँ वह परम्परा चली जा रही है।
समाज की आध्यात्मिक, धार्मिक, दार्शनिक, सांस्कृतिक एवं साहित्यिक प्रगति में साधु एवं साध्वियों की जितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, श्रावक एवं श्राविकाओं की भूमिका उससे कम महत्त्वपूर्ण नहीं होती। साधु एव साध्वियों का दायित्व जहाँ शास्त्रोक्त विधि से धर्माचरण, गम्भीर-चिन्तन विशेष अवसरों पर समाज-सम्बोधन एवं लेखन-सम्बन्धी है, वहीं पर श्रावक-श्राविकाओं का दायित्व शास्त्र सम्मत सदाचरण, साधु-साध्वियों तथा उनके अनुयायी के लिए साधन-सामग्री का दान, उनके संरक्षण की सुव्यवस्था एवं उनके विचारों का प्रचार-प्रसार तथा विद्वानों का सम्मानादि सम्बन्धी है। तात्पर्य यह कि दोनों का अविनाभावी सम्बन्ध है। आज जैन-समाज यद्यपि अल्पसंख्यक है, किन्तु चारित्रिक, वैचारिक, भौतिक एवं अनुशासन की दृष्टि से भारत में उसका जो महत्त्वपूर्ण स्थान बन सका है, उसमें उक्त पद्धति ही उसका मूल कारण है ।
हमारे निबन्ध की विषय-सोमा उक्त चतुर्विध संघ के केवल ऐसे कुछ श्रावकश्राविकाओं से सीमित है, जिनके नामों एवं कार्यों के उल्लेख कुछ प्राचीन जैन-अभिलेखों एवं जैन ग्रन्थ-प्रशस्तियों में उपलब्ध होते हैं और जिन्होंने जैन कला, संस्कृति, इतिहास, साहित्य, समाज एवं राष्ट्र के नव-निर्माण में अभूतपूर्व योगदान किए हैं। अभिलेखों के उत्कीर्णकों एवं ग्रन्थ-प्रशस्तिकारों ने बड़े ही रोचक एवं मार्मिक भाषा-शैली में उनका स्मरण किया है । उनमें से कुछ का संक्षिप्त परिचय यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है :
सर्वप्रथम जैन मन्दिरों, मठों, कीर्तिस्तम्भों एवं अन्य सार्वजनिक स्थानों में उपलब्ध जैन अभिलेखों में उल्लिखित ऐसे पुरुषों एवं महिलाओं का परिचय प्रस्तुत किया जायेगा जिन्होंने अपने बल-वीर्य पुरुषार्थ-पराक्रम न्यायोचित सम्पत्ति-अर्जन एवं उसका दान तथा अपने बुद्धि-कौशल से महावीर के मार्ग को धवलित रखा। ऐसे सत्पुरुषों में हम सर्वप्रथम कलिंग नरेश महामेघवाहन ऐल खारवेल का स्मरण करते हैं, जिसने ईसा पूर्व दूसरी सदो के • आस-पास अपने अजेय पौरुष से कलिंग को भारत का एक शक्तिशाली साम्राज्य बनाया
था। उसका एक शिलालेख भुवनेश्वर के पास उदयगिरि खण्ड गिरि की पहाड़ी पर मिला है, जो १७ पक्तियों का है। उसमें उसने अपने राज्यकाल का पूरा इतिवृत्त प्रस्तुत किया है।
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