________________
वसुदेवहिण्डी : प्राकृत - बृहत्कथा
141
है । जैन परम्परानुसार, 'वसुदेवहिण्डी' में श्रीकृष्ण की प्राचीन कथा के अन्तर्गत श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव की कथा की आयोजना इस प्रकार हुई है :
ॐ रूपवान् एवं प्रचण्ड पराक्रमी वसुदेव ने अपने बड़े भाई से रुष्ट होकर घर छोड़ दिया और वे देश-देशान्तर - सम्पूर्ण बृहत्तर भारत का परिभ्रमण ( हिण्डन ) करने लगे । इसी क्रम में उन्होंने नरवाहनदत्त की भाँति विविध पराक्रम प्रदर्शित किये और विद्याधरी तथा मानवी जाति की अट्ठाईस पत्नियाँ प्राप्त कीं । अन्तिम पत्नी के रूप में उन्होंने देवकी को प्राप्त किया । इसके पूर्व रोहिणीलम्भ में रोहिणी पत्नी की प्राप्ति के क्रम में रोहिणी के पिता राजा रुधिर द्वारा आयोजित स्वयंबर में ही अकस्मात् वसुदेव का, अपने बड़े भाई समुद्रविजय से मिलन हो गया । समुद्रविजय भी उस स्वयंबर में भाग लेने आये थे । समुद्रविजय ने वसुदेव को बहुत समझाया बुझाया। उसके बाद वसुदेव अपनी सभी पत्नियों को लेकर द्वारकापुरी लौट आये और वहाँ अपने कुटुम्बी जनों के साथ मिलकर पूर्ववत् रहने लगे ।
मदनमंचुका का प्रसंग इस कथाग्रन्थ में छोड़ दिया गया है । सम्भवतः, कृष्ण की कथा के प्रसंग में उसकी संगति नहीं थी । 'बृहत्कथा' की मूलभूत पात्री मदनमंचुका के प्रसंग को परिवर्तित कर उसके स्थान पर गणिकापुत्री सुहिरण्या और राजकन्या सोमश्री का प्रणय प्रसंग श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब के साथ जोड़ दिया गया है । इस प्रकार, मूल कथा (बृहत्कथा) की वस्तु और उसकी आयोजना की कई एक अनावश्यक घटनाएँ उसमे होने से विलुप्त मूल ग्रन्थ के स्वरूप के विषय में 'बृहत्कथा' के इस प्राकृत- रुपान्तर 'वसुदेवहिण्डी' की प्राप्ति से अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्यों का उद्भावन होता है ।
कहना अनपेक्षित न होगा कि महाकवि गुणाढ्य एक साथ ही कर्मठ और आध्यवसायी उद्भट प्रत्यालोचक, मनस्वी सत्यसन्ध सुकुमार शैली के सुललित कवि निर्भीक और उत्क्रान्तिकारी तथा रसवादी औपन्यासिक थे । साथ ही, उनकी 'बृहत्कथा' हृदयविमोहक और सार्थक कथाकृति है । पैशाची में परिनिष्णात गुणाढ्य ने इतनी सफलता के साथ रोमांस को अपने कथाग्रन्थ में समाहित किया है कि उसके प्रभाव का परवर्ती कथासाहित्य में पारम्परीय संक्रमण असहज नहीं है ।
हम
उल्लसित हो जाते हैं,
नहीं लगते । भारतीय
गुणाढ्य के चरित्र चित्रण में आदर्शवाद के पुट से उत्साहित हो उठते हैं— निराश नहीं होते, हँसने लगते हैं, रोने संस्कृति के व्यापक विकास पर हम गर्वित होते हैं। उसके दोषों को भी पढ़कर हमें लज्जित नहीं होना पड़ता है, वरन् हम यथार्थ जीवन की विभिन्न अवस्थाओं से परिचित होते हैं । यह आदर्शवाद अकेले गुणाढ्य की कथाकारों में अग्रगण्य बनाने के लिए पर्याप्त है ।
'बृहत्कथा' को चाहे जिस दृष्टिकोण से देखें - मौलिकता, चरित्र-चित्रण, लोकजीवन की यथार्थता, भाषा, वर्णन-शैली, रतिरस की उत्कृष्टता भावसम्प्रेषण की सफलता - सभी तरह से वह अद्वितीय है और विश्व - साहित्य के योग्य कथाग्रन्थों में पंक्तिय है । 'वसुदेव हिण्डी' उसी अद्भुत ग्रन्थ का अपूर्व नव्योद्भावना है, जिसकी प्रभावान्वित से समग्र कथा - वाङ्मय अनुप्राणित है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org