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वसुदेवहिण्डी : कृत- बृहत्कथा श्री रंजन सूरिदेव
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आचार्य संघदासगणिवाचक ( अनुमानत: ईसा की तृतीय- चतुर्थ शती) भारतवर्ष के प्रमुख कूटस्थ गद्यकारों में अन्यतम हैं । उनकी उल्लेखनीय प्राकृतभाषा निबद्ध गद्यात्मक कथाकृति 'वसुदेव हिण्डी' की उपलब्धि इसलिए महत्वपूर्ण घटना है कि इससे महाकवि गुणाढ्य की पेशाची भाषा में परिगुम्फित 'बृहत्था' ('वड्ढकहा ') के अज्ञात मूल स्वरूप पर प्रकाश पड़ता है । गवेषणापटु विद्वानों में अग्रगण्य डॉ० ऑल्सडोर्फ (हैम्बुर्ग युनिवर्सिटी, प० जर्मनी के प्राच्यविद्या विभागाध्यक्ष, अब स्वर्गीय) ने इसे 'बृहत्कथा' का जैन रूपान्तर कहा है । यह सुनिश्चित है कि संघदासगणी ने जो 'वसुदेव हिण्डी' लिखी, उसमें उन्होंने गुणाढ्य की 'बृहत्कथा' को ही आधार बनाया है । सुदुर्लभ कथाशक्ति से सम्पन्न ' इतिवृत्तकथक' होने के नाते उन्होंने अपनी साहित्यिक प्रतिभा, कला-चेतना और सारस्वत श्रम के विनियोग द्वारा 'वसुदेवहिण्डी' के शिल्प-सन्धान और अन्तरंग प्रतिमान में अनेक परिवर्तन किये, जिससे कि 'बृहत्कथा' से उद्गत मूल स्रोत को, नई दिशा की ओर मुड़कर स्वतन्त्र कथाधारा के रूप में संज्ञित होने का अवसर मिला ।
कथामर्मज्ञ संघदासगणी ने 'बृहत्कथा' की मौलिकता में 'वसुदेवहिण्डी' की मौलिकता को विसर्जित नहीं होने दिया है । उन्होंने 'बृहत्कथा' की लौकिक कामकथा को धर्मकथा और लोककथा में परिवर्तित तो किया ही, कथानायक को बदलकर सबसे अधिक महत्त्व का परिवर्तन किया । पेशाची निबद्ध गुणाढ्य की 'बृहत्कथा' में वत्सराज उदयन के पुत्र नरवानदत्त कथानायक हैं, किन्तु संघदासगणी में अन्धकवृष्णिवंश के प्रसिद्ध महापुरुष वसुदेव को कथानायक की गरिमा प्रदान की है ।
गुणा की 'बृहत्कथा' केवल 'वसुदेवहिण्डी' का ही मूलाधार नहीं है, अपितु 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह ' ( बुधस्वामी), 'कथासरित्सागर' (सोमदेवभट्ट) और 'बृहत्कथामंजरी' (क्षेमेन्द्र) का भी आधा रोपजीव्य है । इसीलिए, सोमदेव ने 'कथासरित्सागर' की अन्तिम प्रशस्ति में 'बृहत्कथा' को विविध कथाओं के अमृत का आगार कहा है । बुधस्वामी ( अनु - मानतः ईसा की द्वितीय तृतीय शती) नेपाल के निवासी थे, इसलिए उनके द्वारा रचित 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' को 'बृहत्कथा' को नेपाली 'वाचना' कहा गया है । इसी प्रकार, क्षेमेन्द्र और सोमदेव भट्ट कश्मीर के राजा अनन्तबर्मा (ईसा की १०-११ वीं शती) के राजदरबार के रत्न थे । राजा अनन्त की रानी सूर्यमती कथा सुनने में बहुत रस लेती थीं । अतएव, रानी के लिए क्षेमेन्द्र और सोमदेव ने 'बृहत्कथा' के आधार पर क्रमशः 'बृहत्कथामंजरी' एवं 'कथासरित्सागर' की रचना की । इसलिए, उक्त दोनों कथाग्रन्थों को 'बृहत्कथा' की कश्मीरी वाचना कहा गया है । और फिर, 'वसुदेव हिण्डी' 'बृहत्कथा' के उक्त नेपाली नव्योद्भावन -- 'बृहत्कथाश्लोकसंग्रह' का परवत्र्त्ती या कनीय समकालीन तथा उक्त कश्मीरी नव्योद्भावनों
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