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________________ 138 VAISHALI İNSTITUTE RÉSEARCH BULLETIN No. Ŝ 'बृहत्कथामंजरी' तथा 'कथासरित्सागर' के पूर्ववर्ती, जेनाम्नाय पर आधृत प्राकृत-नव्योद्भावना है। ___ इस प्रकार, पेशाची 'बृहत्कथा' की तीन संस्कृत में तथा एक प्राकृत में नव्योद्भावनाएँ प्राप्त हैं। 'कथासरित्सागर' के प्रथम कथापीठलम्बक के प्रथम तरंग से यह सूचना मिलती है कि आन्ध्र के राजा सातवाहन ने, गुणाढ्य जिनके मन्त्री थे, देशी भाषा में अनुवर्तित 'बृहत्कथा' की प्रतियाँ प्रचारार्थ वितरित की थीं और उक्त चारों कथाकारों को 'बृहत्कथा' की अलग-अलग उक्त प्रतियाँ प्राप्त थीं. जिनके आधार पर उन्होंने अपनी कथाकृति का नव्योद्भावन प्रस्तुत किया। कश्मीरी वाचनाओं में तो उनके कथाकारों ने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि 'बृहत्कथा' में जो है, वही वे लिख रहे हैं। पुनः नेपाली और जैन वाचनाओं में कश्मीरी वाचनाओं से कथा की समान्तरता के कारण ही उनके भी बृहत्कथा के आधार पर लिखे जाने की बात स्पष्टतया संकेतित है। 'बृहत्कथा' की उक्त संस्कृत-वाचनाएँ श्लोकों में निबद्ध हैं और उनके कथानायक उज्जयिनी के राजकुमार नरवाहनदत्त हैं, किन्तु प्राकृत-वाचना--'वसुदेवहिण्डी' प्राकृत-गद्य में परिबद्ध है और उसमें नरवाहनदत्त के स्थान पर द्वारकापुरी के दस यादव दशाहों में दसवें, यानी अन्तिम शलाकापुरुष वसुदेव (कृष्ण के पिता) को चरितनायक का गौरव प्रदान किया गया है। इस प्रकार प्रांजल प्राकृत-गद्य की भूमि पर, परिवर्तित कथानायक और नव्यता के साथ उपन्यस्त कथा की दृष्टि से यह कथाकृति 'मौलिक' या 'नव्योद्भावन' शब्द को सर्वथा सार्थक करती है। 'वसुदेव हिण्डी' के युगचेतनासम्पन्न कथालेखक ने सच्चे अर्थ में 'बृहत्कथा' की अविच्छिन्न परम्परा को नयी दिशा देकर उसे सातिशय ऊर्जस्वल और प्राणवाहिनी धारा से ततोऽधिक गतिशील बनाया है। आचार्य संघदासगणी परम्परा के अन्धानुगामी नहीं, अपितु परम्परा और अपरम्परा के समन्वयकारी कलासाधक हैं। वे सही मानी में अनेकान्तवादी विचारक हैं। इसीलिए, उन्होंने जेनाम्नाय के प्रति न तो कभी दुराग्रहवादी प्रचारात्मक दृष्टिकोण अपनाया है, न ही जैनेतर आम्नायों की विकृतियों और विशेषताओं के उद्भावन में पक्षपात का प्रदर्शन किया है। कथा की ग्रथन-कला में एक कथाकार के लिए जो निर्वयक्तिकता या माध्यस्थ्य अपेक्षित होता है, संघदासगणी में वह भरपूर है और वे यथार्थतः कला की तन्मयता की मधुमती भूमिका में स्थित साधारणीकृत भावचेतना-लोक के कलाकार हैं । लोकसंग्रह की भावना और अगाध वैदुष्य दोनों की मणिप्रवाल-शैली के मनोहारी दर्शन उनकी युग-विजयिनी कथाकृति 'वसुदेव हिण्डी' में सर्वत्र सुलभ हैं । जैन शोधकों को यथोक्त नेपाली और कश्मीरी नव्योदेभावनों से सर्वथा विलक्षण 'बृहत्कथा' का एक विस्तृत प्राकृत -नव्योद्भावन 'वसुदेवहिण्डी' के रूप में उपलब्ध हुआ है, जिसने आश्चर्यजनक ढंग से देश-देशान्तरों के विद्वानों का ध्यान आकृष्ट किया है । प्राच्यविद्या के उपासक जर्मन विद्वान् डॉ० ऑल्सडोर्फ का मन्तव्य है कि 'बृहत्कथा' निस्सन्देह प्राचीन भारतीय साहित्य का एक रसमय और महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। इस लुप्तग्रन्थ ('बृहत्कथा') के वास्तविक 'प्रकार' के निर्धारण और पुनर्घटन के कार्य में 'वसुदेवहिण्डी' से पर्याप्त सहायता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522603
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1982
Total Pages294
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size6 MB
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