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________________ 58 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN No. 3 "कर्म प्रभाव की व्याख्या करते हुए मुनि हर्ष कहते है कि कर्मों के सामने सभी महापुरुष निर्बल हो गये । देव-दानव और नर सभी कर्म-प्रभाव के समक्ष नतमस्तक हुए।" __ "सन्त-चरित पर भी तेरापन्थ-साहित्य में अनेकों रचनाएँ लिखी गयी है। कई आचार्यों और सन्तों ने तेरापन्य के सन्तों पर रचना कर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। आचार्य भिक्षु के समय भी सन्त-चरित लिखे गये । जयाचार्य ने १५ सन्त-चरित लिखे, जिनमें-भिक्षुयस-रसायण, श्वेतसी-चरित्र, ऋषिराय-सुयस आदि प्रमुख हैं। सन्तोषचन्द जी बरडिया ने जयाचार्य की कृतियां नामक पुस्तक में इसका उल्लेख किया है।" हम दो चार उद्धरण सन्त-चरित की कृतियों से उद्धरित करते हैं- "आचार्य भिक्षु ने ४८ सन्त और ५६ साध्वियों को दीक्षित किया, जिनमें २८ सन्त और ३९ साध्वियों ने जीवन पर्यन्त संयम पालन किया। शेष संयमच्युत हो गये। जयाचार्य ने लघु-भिक्षु-यश-रसायन में इसका उल्लेख किया है।" तेरापन्थ के पंचम आचार्य श्री मघवा जयाचार्य की दीक्षा के सम्बन्ध में लिखते हैंमाघ कृष्ण सप्तमी के दिन वट वृक्ष के तले जयाचार्य की दीक्षा हुई। "आजार्य तुलसी ने मगन मुनि की संघसेवा के सम्बन्ध में अपने बड़े सुन्दर उद्गार अभिव्यक्त किये हैं। आचार्य तुलसी ने इन्हें मंत्री मुनि की उपाधि से विभुषित किया। इनके देहावसान पर आचार्य जी ने अपनी सस्नेह श्रद्धांजलि अर्पित की।" १. (उपदेश माला-कर्मनी सिज्झाय, ढाल-१ पृ० सं० ६१) देव दानव तीर्थकर, हरि हर नरवर सबला। कर्म प्रमाण सुख दुख पाम्या, सबल हुआ महा निबला रे। प्राणी कम समों नहीं कोई ॥ २. जयाचार्य की कृतियां-सम्पादक सन्तोषचन्द जी बरडिया-विषय सूची। ३. (लघु-भिख्खु-यश-रसायन, ढाल-४ पृ० सं० २११) अधिक गुणी ए आदि दे, अड़तालिस अणगार । ऊज्जा छपन आस रे, स्वाम छतां व्रत सार । अण्टवीस मुनि आसरे, समणी गुण चालीस । गण माहे गाढ़ा रह्या, शेष नोकल्या दीस ॥ ४. (जीतमल जी रो बखाण-लेखक आचार्य मघवा ढाल-४ पृ० सं० ५६) माह बिद सातम शुभ दिने, घाट दरवजे पूर्व दिशि माहक । वट वृक्ष तल ऋषिराय जी, सामायिक चरण दियो सुखदायक ।। ५. बित नेम-ढाल-१-२ पृ० सं०-१६४ । वयोवृद्ध शासन सुखद, मन्त्री मगन महान । माह बिद छठ मंगल दिवस, को स्वर्ग प्रस्थान ॥ अद्भुत अतुल मनोबली, शासन स्तम्भ सधीर । दृढ़ प्रतिज्ञ सुस्थिर मति, आज विलायो वीर ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522603
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1982
Total Pages294
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size6 MB
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