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जैन नीतिदर्शन को सामाजिक सार्थकता
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जैसे-जैसे हम मनोवेगों या कषाय-चतुष्क से ऊपर उठेंगे वैसे-वैसे सच्ची शान्ति का लाभ प्राप्त करेंगे ।
इस प्रकार हम देखते हैं कि जैन आचार-दर्शन सामाजिक जीवन से विषमताओं के निराकरण और समत्व के सृजन के लिए एक ऐसी आचार विधि प्रस्तुत करता है, जिसके सम्यक् परिपालन से सामाजिक और वैयक्तिक दोनों ही जीवन में सच्ची शान्ति और वास्तविक सुख का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। उसने सामाजिक जीवन में सम्बन्धों के शुद्धिकरण पर अधिक बल दिया है । यही कारण है कि उसके द्वारा प्रस्तुत सामाजिक आदेश अपनी प्रकृति में निषेधात्मक अधिक हैं, यद्यपि सामाजिक आदेशों का उसमें पूर्ण अभाव नहीं है । उसके कुछ प्रमुख सामाजिक आदेश निम्न हैं
निष्ठा - सूत्र
(१) सभी आत्माएँ स्वरूपतः समान हैं, अतः सामाजिक जीवन में ऊँच-नीच के वर्गभेद या वर्णभेद खड़े मत करो ।
(२) सभी आत्माएँ समान रूप से सुखाभिलाषी हैं, शोषण या अपहरण करने का अधिकार किसी को नहीं है जैसा तुम उनसे स्वयं के प्रति चाहते हो ।
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(३) संसार में प्राणियों के साथ मैत्रीभाव रखो, किसी से भी घृणा एवं विद्वेष मत रखो।
अतः दूसरे के हितों का हनन,
सभी के साथ वैसा व्यवहार करो
(४) गुणीजनों के प्रति आदर भाव और दुष्टजनों के प्रति उपेक्षा भाव रखो ।
(५) संसार में जो दुःखी एवं पीड़ित जन हैं, उनके प्रति करुणा और वात्सल्य भाव रखो और अपनी स्थिति के अनुरूप उन्हें सेवा और सहयोग प्रदान को ।
व्यवहार-सूत्र
(१) किसी निर्दोष प्राणी को बन्दी मत बनाओ, अर्थात् सामान्यजनों की स्वतन्त्रता में बाधक मत बनो ।
(२) किसी का वध या अंगभेद मत करो, किसी से भी मर्यादा से अधिक काम
मत लो ।
(३) किसी की आजीविका में बाधक मत बनो ।
(४) पारस्परिक विश्वास को भंग मत करो । न तो किसी की अमानत हड़पो और किसी के रहस्यों को प्रकट करो ।
(५) सामाजिक जीवन में गलत सलाह मत दो, अफवाह मत फैलाओ और दूसरों के चरित्र हनन का प्रयास मत करो ।
(६) अपने स्वार्थं की सिद्धि हेतु असत्य - घोषणा मत करो ।
(७) न तो स्वयं चोरी करो, न और को सहयोग दो, चोरी का माल मी मत खरीदो । (८) व्यवसाय के क्षेत्र में माप-तौल में अप्रमाणिकता मत रखो और वस्तुओं में मिलावट मत करो ।
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