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18 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN No. 3
युवकों से भरपूर गांव, मधुमास और यौवन, बूढ़ा पति, पुरानी शराब के अधीन वह असती न हो तो क्या मर जाए ? मध्ययुगीन (और आधुनिक) ग्रामीण समाज का यह यथार्थ चित्रण है। शुद्धशील ने वर्षा ऋतु का वर्णन इस प्रकार किया है
णहु सकद्दमु णहु सकोअ महि सरस सख मेह दिसि वहल-विज्जुल परिअ अण-मण मोह अरु
सवरि चावहरु पाउसु विभिउ ।। ९।२ पथ कीचड़-मरा, आकाश सकोप (लाल लाल) धरती सरस, गरजते हुए बादल, दिशाएं बिजलियों से प्रचुर, ऐसा पथिक जनों के मनों को मोहने वाला धनुर्धर पावस वेग से फैल गया।
इस विवेचन से सिद्ध है कि अपभ्रंश कविता स्वयंभू से बहुत पहले, संस्कृत प्राकृत कविताओं के समान्तर न केवल अपना स्थान बना चुकी थी, बल्कि विधा शिल्प और आध्यात्मिक और लौकिक अनुभूतियों की अभिव्यक्ति के अपने शिल्प का विकास उसने कर लिया था।
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