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________________ 14 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN No. 3 छड्डणि दुवई धुवइ हिं जडिय । व उमुहेण समप्पिय पद्धडिय ॥ रि० ० च० ४।१ स्व० छं० में उद्धृत छंदों में से अधिकांश का सम्बन्ध हरिवंश कथा से है; स्वयंभू ने रि० ० चरिउ के सन्दर्भ में ही चतुर्मुख को पद्धड़िया का प्रवर्तक बताया है। इससे सिद्ध है कि चतुर्मुख ने हरिवंश पर पद्धड़ियाशैली में काव्य की रचना की। उनके अवतरण इस प्रकार हैं हउं अज्जुणु तुम्ह एउ रणु । २।१ मैं अर्जुन, तुम और यह रण । को महुँ जीअंतहुँ णेइ धणु । २।३ कौन मेरे जीते हुए, धनुष ले जाता है । णिअणाम पआसहं सुरहं सज्यासहं । २।३ अपना नाम प्रकाशित करने वाले देवताओं के समान । दोणह किअ-अहिसेअए विविह समुन्भिअ-चिंधहइं। वड्ढि असमरासइं वलई वे वि सणद्धइं ॥ ८७।१ द्रोणाचार्य का अभिषेक होने पर, जिन्होंने अपने-अपने चिह्न उठा लिये हैं, जिनमें युद्ध का आवेग बढ़ रहा है, ऐसे दोनों सैन्य संनद्ध हो गए। कुछ अवतरण रामकथा से सम्बन्ध रखते हैं, इससे यह अनुमान निराधार नहीं कि चतुर्मुख ने रामकाव्य की भी रचना की होगी। भाइ-विओअए जिह जिह करइ विहीसणू सोओ। तिह तिह दुक्खेण रुअइ सह विवइ वाणर लोओ। भाई के वियोग में जैसे-जैसे विभीषण शोक करता वैसे-वैसे वानरलोक विपत्ति में साथ-साथ रो उठता है। णं पवरुपलासु वणसंचारि पफुल्लिआ। ते चोदह लक्खणे णिमिसद्धे सरसल्लिआ ॥ ६॥६३ ___ उन चौदह राक्षसों को लक्ष्मण ने आधे पल में तीरों से वेध दिया, [रास्ते में जाते हुए] वे ऐसे दिखाई देते थे जैसे खिले हुए पलाशपुष्प हों, निम्नलिखित अवतरण में प्रकृति का चित्रण है ससि उग्गउ ताम जेण णह-अंगण मंडियउ । ण रह रहचक्क दीसइ अरुणें छड्डियउ ॥ ६॥६५ इतने में चंद्र उग आया, उसने नभ के आँगन को मंडित कर दिया, वह ऐसा दिखाई देता, जैसे अरुण (बाल सूर्य) के द्वारा छोड़ा गया रतिरथ चक्र हो । इस प्रकार चतुर्मुख ने हरिवंश और रामकथा पर प्रबंधकाव्यों की रचना की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522603
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR P Poddar
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1982
Total Pages294
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size6 MB
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