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VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2
और उसका अन्तिम छोर भी जाना जा सके अर्थात् वह सम्पूर्ण किसी के ज्ञान में प्रतिभासित हो सके । ऐसी स्थिति में सर्वज्ञ के ज्ञान में सम्पूर्ण अलोकाकाश का प्रतिभासित होना तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता । अथवा प्रलोकाकाश की अनन्तता की समाप्ति का प्रसंग उपस्थित होता है । तब यह कैसे कहा जा सकता है कि सर्वज्ञ सब द्रव्यों का साक्षात् ज्ञान करता है ? अलोक में स्थित अनन्त आकाश के ज्ञान के अभाव में उसका ज्ञान पूर्ण कैसे हो सकता है ?
पर्याय अर्थात् द्रव्य की विशेष अथवा विविध अवस्थायें । पर्यायों का कोई अन्त नहीं है अर्थात् पर्याय अनन्त हैं । किसी भी द्रव्य के पर्यायों को काल की दृष्टि से तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं - वर्तमानकालीन, भूतकालीन और भविष्यत्कालीन । जहाँ तक वर्तमानकालीन पर्यायों का प्रश्न है, वे काल को दृष्टि से सीमित हैं अतः उनका सर्वज्ञ के ज्ञान में प्रतिभास संभव हो सकता है । भूतकाल और भविष्यत्काल असीमित हैं अर्थात् भूतकाल अनादि है तथा भविष्य - त्काल अनन्त है । ऐसी स्थिति में आदिरहित भूतकालीन एवं अन्तरहित भविष्यत्कालीन समस्त पर्यायों का ज्ञान कैसे सम्भव हो सकता है ? यदि इस प्रकार का ज्ञान संभव माना जाएगा तो अनादि की आदि और अनन्त का अन्त मानना पड़ेगा क्योंकि आदि और अन्त तक पहुँचे विना 'समस्त' पूर्ण नहीं हो सकेगा । अतः सर्वज्ञ द्रव्यों के सब पर्यायों का ज्ञान करने में कैसे समर्थ हो सकेगा, यह समझना कठिन है । इतना ही नहीं, भूतकालीन पर्याय, जो कि नष्ट हो चुके हैं तथा भविष्यत्कालीन पर्याय, जो कि उत्पन्न ही नहीं हुए हैं, उन सबका प्रतिभास सर्वज्ञ के ज्ञान में कैसे हो सकेगा ? हम असर्वज्ञों की तरह सर्वज्ञ में स्मृति, कल्पना, अनुमान आदि की विद्यमानता नहीं होती है अर्थात् उसका सम्पूर्ण ज्ञान इन्द्रियों व मन पर आधृत न होकर सीधा आत्मा से सम्बद्ध होता है तथा प्रत्यक्ष एवं साक्षात् होता है । ऐसी स्थिति में अविद्यमान पर्याय सर्वज्ञ - ज्ञान में कैसे प्रत्यक्ष हो सकेंगे, सर्वज्ञ उनका साक्षात्कार कैसे कर सकेगा ?
जिन पर्यायों अथवा पदार्थों का सर्वज्ञ को प्रत्यक्ष अर्थात् साक्षात्कार होता है उनकी लम्बाई, चौड़ाई, ऊँचाई, वजन आदि का भी क्या वह सीधा आत्मा से ज्ञान कर सकता है ? दूसरे शब्दों में, क्या सर्वज्ञ बिना किन्हीं साधनों की सहायता के केवल आत्मज्ञान से विश्व के समस्त पदार्थों का, जिनमें पर्वत, समुद्र, सूर्य, चन्द्र आदि भी समाविष्ट हैं, नाप-तौल जान सकता है ? बता सकता है ? पदार्थों की लम्बाई-चौड़ाई आदि का विना नाप-तौल के हीनाधिक रूप से अर्थात् अनुमानतः तो कई बार ज्ञान होता दिखाई देता है किन्तु ठीक-ठीक ज्ञान के लिए तो वाह्य साधनों की सहायता अपेक्षित रहती ही है । भौतिक वस्तुओं का नापतौल केवल आध्यात्मिक एकाग्रता से सही-सही रूप में कैसे हो सकता है, इसे समझना-समझाना प्रसर्वज्ञ के लिए अशक्य है। हाँ, सामान्य तौर से किसी वस्तु का नाप-तौल अनुमानतः जाना जा सकता है और वह कभी-कभी पूरा सही भी हो सकता है किन्तु इस प्रकार का ज्ञान असंदिग्धरूप से यथार्थ ही होगा, यह निश्चित नहीं है । यह हो सकता है कि कोई पदार्थ या क्षेत्र साधारण व्यक्ति को
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