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स्व. डा० हीरालालजी जैन और 'पावा'
आचार्य अनन्तप्रसाद जैन "लोकपाल" डा० हीरालालजी जैन से मेरा निकट परिचय उस समय हुआ जब वे वैशाली जैन रिसर्च इन्स्टीट्यूट के डाइरेक्टर थे। वे इस शोध संस्थान के प्रथम डाइरेक्टर थे और इन्होंने अत्यन्त परिश्रम तथा बुद्धिमत्ता के साथ इसका प्रवन्ध, विकास एवं संयोजन किया था। विभागीय काम से प्रायः वे पटना आते रहते थे। पटना आने पर वे मारवाड़ी होटल में ठहरते थे। दिन में २-२॥ बजे के करीव वे केवल फलों का ही व्यवहार भोजन में करते थे। उस समय विद्यमान रहने पर हमें भी फलाहार में सम्मिलित होना पडता था। जाड़ों में इस भोजन के बाद हम लोग बाहर, एरोड्रोम वाली सड़क पर, घूमने भी निकल जाते थे।
__ डाक्टर साहब बड़े ही सौम्य शान्त प्रकृति वाले उच्च श्रेणी के श्रावक थे । बहुत बड़े विद्वान् तो थे ही। सदा प्रफुल्ल रहना आपका स्वभाव था। स्नेहियों से हँसी मजाक भी कर लिया करते थे। उनकी बातें बड़ी मीठी, मनोहारी और हृदयग्राही होती थीं। हम लोग घण्टों विवेच्य विषयों पर वार्तालाप एवं विचार विमर्श करते रहते थे। उनके सानिध्य में एक प्रकार के प्रक्षिप्त आनन्द की अनुभूति होती थी अतः वे जब पटना आते थे मैं उनसे अवश्य मिलता था। मेरे मकान पर भी वह आए थे। उस समय मैं पटना के सालिमपुर अहरा नामक मुहल्ले के एक अच्छे से मकान में रहता था और पटना के प्रसिद्ध इन्जीनियरिंग कालेज में मेकेनिकल इन्जीनियरिंग का शिक्षक था।
डॉ० हीरालाल जी से मिलकर बड़ी ही प्रसन्नता होती थी। उनके दिवंगत हो जाने से जैन समाज ने एक अत्यन्त प्रबुद्ध विद्वान् खो दिया। इस कमी की प्रति संभव नहीं दीखती । हमारे अधिकतर विद्वान तो प्राचीन परिपाटी के साथ नवीन परिवर्तन कुछ भी स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं जव कि परिवर्तन ही जीवन है । जैन समाज इसी कारण अभी भी जहाँ का तहाँ खड़ा है -विश्व के साथ मानसिक प्रगति या प्रतियोगिता में आगे नहीं बढ़ सका है। पुराने शास्त्रों पर टीका-टिप्पणी, अनुवादादि, व्याख्याएँ, भाष्य आदि तो बहुत ही हैं और प्रकाशित होते रहते हैं। पर नया निर्माण कुछ भी नहीं दीखता । प्राचीन सिद्धान्तों का आधुनिकीकरण अथवा आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति से भाष्य, व्याख्याएँ और टीकाएं निर्मित की जानी चाहिये।
स्व० डा० साहब ने जैनधर्म, सिद्धान्त और समाज की जो सेवायें की हैं वे कभी भूली नही जा सकतीं। वैशाली इन्स्टीट्यूट द्वारा उनका संस्मर. णात्मक बुलेटिन प्रकाशित करना अत्यन्त प्रशंसनात्मक कार्य है। जैन समाज को डाक्टर साहब की पुण्यस्मृति में कोई स्थायी संस्था स्थापित करना योग्य है।
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