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________________ 278 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 (अनु = पश्चात् + मान =ज्ञान) अनुमान है। यह ज्ञान अविशद होने से परोक्ष है, पर अपने विषय में अविसंवादी है। साथ ही, संशय, विपर्यय, अनध्यवसाय आदि समारोपों का निराकरण करने के कारण प्रमाण भी है। मतिज्ञान के बाद जिस दूसरे ज्ञान का परोक्ष रूप में वर्णन मिलता है, वह है श्रुतज्ञान । परोक्ष प्रमाण में स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क और अनुमान मति. ज्ञान के ही पर्याय हैं, जो मतिज्ञानावरण कर्म के क्षायोपशम से आविर्भूत होते हैं। श्रतज्ञानावरण कर्म के क्षायोपशम से जो श्रुत प्रकट होता है, उसका वर्णन सिद्धान्तागम-ग्रन्थों में भगवान् महावीर की पवित्र वाणी के रूप में पाया जाता है। इस प्रकार प्रमाण जैनदर्शन और तर्क की आश्रयभूमि तो है ही, प्रत्येक दर्शन और तर्क की भी आधारभूमि यही प्रमाण है। जैन तार्किक पहले से ही सत्य और अहिंसा-रूप धर्म की रक्षा के हेतु कृतोद्यम रहे हैं। उनके त्याग और संयम की परम्परा साध्य की तरह साधनों की पवित्रता के प्रति भी आग्रहशील रही है। यही कारण है कि जैनदर्शन के प्राचीन ग्रन्थों में तर्कशास्त्रीय आलोचना के प्रसंग में न्यायसूत्रोक्त छल, वाद, वितण्डा, जल्प आदि के प्रयोग का आपवादिक समर्थन भी नहीं पाया जाता है। अकलंकदेव ने भी सत्य और अहिंसा की सुरक्षा की दृष्टि से छल आदि को असत् उत्तर-प्रयोग कहते हुए उन्हें सर्वथा अन्याय्य और परिवयं माना है। तर्क की शास्त्रीय विवेचना की दृष्टि से जैनदर्शन की तर्कप्रमाणमीमांसा, अनुमानप्रमाणमीमांसा, शब्दार्थमीमांसा, अपोहवादमीमांसा आदि जटिल, किन्तु रोचक प्रकरणों के अनुशीलन-मनन के निमित्त एक नहीं, अपितु अनेक जन्म-जन्मान्तरों का सारस्वत श्रम अपेक्षित है । यह इस कारण और भी आवश्यक है कि अज्ञान की निवृत्ति और मोक्ष-प्राप्ति को ही प्रमाण का फल बताया गया है, जो कदापि अनायास-लभ्य नहीं है। अकलंकदेव ने कहा भी है : 'प्रमाणस्य फलं तत्त्वनिर्णयादानहानधीः । निःश्रेयसं परं वेति केवलस्याभ्युपेक्षणभ् ।' - (न्या० वि०, का० ४७६) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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