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________________ 234 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 हुई । ई० बी० कावेल ने संस्कृत नाटकों की प्राकृत का अध्ययन प्रस्तुत किया, जो सन् १८७५ ई० में लन्दन से 'ए शार्ट इंट्रोडक्शन टु द आर्डनरी प्राकृत आव द संस्कृत ड्रामाज विद ए लिस्ट आव कामन इर्रेगुलर प्राकृत वार्ड्स के नाम से प्रकाशित हुआ । इस सम्बन्त्र में ई० म्यूलर की 'वाइत्रेगे त्सूर ग्रामाटीक डेस जैन प्राकृत' (बर्लिन, १८७५ ई०) नामक रचना भी प्राकृत भाषा पर प्रकाश डालती है । सम्भवत: प्राकृत व्याकरण के मूलग्रन्थ का अंग्रेजी संस्करण सर्वप्रथम डा० रूडोल्फ हार्नले ने किया। उनका यह ग्रन्थ 'द प्राकृत लक्षणम् एण्ड चण्डाज प्रेमर आफ द एन्शियेंट प्राकृत' १८८० ई० में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ । प्राकृत भाषा के पाणिनि : पिशल : पाश्चात्त्य विद्वानों में जर्मन विद्वान् रिचर्ड पिशल ( R. Pischel) ने सर्व प्रथम प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक एवं व्यवस्थित अध्ययन प्रस्तुत किया है । यद्यपि उनके पूर्व हार्नले, लास्सन, होयेकर, बेवर आदि ने प्राकृत भाषा के सम्बन्ध में अध्ययन प्रारम्भ कर दिया था, किन्तु इस अध्ययन को पूर्णता पिशल ने ही प्रदान की है । रिचर्ड पिशल ने आचार्य हेमचन्द्रकृत 'हेमशब्दानुशासन' प्राकृत व्याकरण का व्यवस्थित रीति से प्रथम बार सम्पादन किया, जो सन् १८७७ई, में प्रकाशित हुआ । प्राकृत भाषा के अध्ययन में पिशल ने अपने जीवन का अधिकांश समय व्यतीत किया । प्राकृत भाषा के व्याकरण की प्रकाशित एवं अप्रकाशित अनेक कृतियों के अनुशीलन के आधार पर उन्होंने प्राकृत भाषाओं का व्याकरण 'ग्रेमेटिक डेर प्राकृत श्प्राखन' नाम से जर्मन में लिखा, जो १९०० ई० में जर्मनी के स्ताम्बुर्ग नगर से प्रकाशित हुआ इसके अब अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भाषाओं के अनुवाद प्रकाशित हो चुके हैं । । । प्राकृत भाषा के इस महान् ग्रन्थ में पिशल ने न केवल प्राकृत भाषा के व्याकरण को व्यवस्थित रूप दिया है, अपितु प्राकृत भाषा की उत्पत्ति आदि पर भी विचार किया है । अपने पूर्ववर्ती पाश्चात्त्य विद्वानों के मतों का निरसन करते हुए पिशल ने पहली बार यह मत प्रतिपादित किया कि प्राकृत भाषा संस्कृत से उत्पन्न न होकर स्वतन्त्ररूप से विकसित हुई है । वैदिक भाषा के साथ प्राकृत का तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत कर उन्होंने भाषा विज्ञान के क्षेत्र में अध्ययन की नई दिशा प्रदान की है । ' विभिन्न प्राकृतों का अध्ययन डा० पिशल के बाद बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में पाश्चात्य विद्वानों ने प्राकत भाषा के विभिन्न रूपों का अध्ययन करना प्रारम्भ कर दिया था । स्वतन्त्र ग्रन्थों के साथ-साथ प्राकृत भाषा सम्बन्धी लेख भी शोध-पत्रिकाओं में प्रकाशित १. A. M. Ghatge -- ' A brief sketch of Prakrit Studies' - In Progress of Indic studies, Poona, 1942. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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