________________
तीर्थकर महावीर का प्रतिमा निरूपण
231 कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ी महावीर आकृति २ खड़ी और २१ अासीन तीर्थंकर आकृतियों से वेष्टित है। मूलनायक के पृष्ठभाग में वृताकार प्रभामंडल और त्रिछत्र, जिस पर कलश स्थित है, उत्कीर्ण हैं। वारंगल से भी महावीर की दो आसीन प्रतिमाएं प्राप्त होती हैं। चालुक्यों के विशिष्ट कलाकेन्द्र वादामी (लगभग ७ वीं शती) से भी महावीर की कुछ मनोज्ञ प्रतिमाएँ उपलब्ध होती हैं । महावीर की कुछ विशिष्ट मूर्तियां दक्षिण भारत के प्रसिद्ध कला केन्द्र एलौरा (९ वी ११ वीं शती) में उत्कीर्ण हैं। गुफा नं०:०, ३१, ३२ (इन्द्रसभा), ३३, ३४ में महावीर को अनेकशः अपने यक्ष-यक्षिणी (मातंग और सिद्धायिका) के साथ ध्यानमुद्रा में आसीन चित्रित किया गया है। इन चित्रणों में महावीर को लांछन सिंह, श्रीवत्स, एवं विछत्र आदि से युक्त प्रदर्शित किया गया है।
यह ज्ञातव्य है कि दक्षिण भारत के वादामी एवं एलौरा जैसे स्थलों की महावीर मूर्तियों में उत्तर भारत की जिनमर्तियों में प्राप्त होनेवाले सिंहासन के मध्य के धर्मचक्र, पार्श्ववर्ती चामरधारी सेवकों, उड्डीयमान मालाधारों, गजों एवं दुन्दुभिवादकों को नहीं उत्कीर्ण किया गया है।
इन स्वतंत्र मूर्तियों के अतिरिक्त महावीर को जीवंतस्वामी रूप में प्राभूषणों से अलंकृत भी चित्रित किया गया है। ऐसी मूर्तियाँ गुजरात के बड़ौदा स्थित अकोटा (५वीं शती), राजस्थान के पाली जिले में सेवड़ी स्थित महावीर मंदिर (लगभग १०वीं शती) एवं राजस्थान के ही जोधपुर स्थित प्रोसिया की जैन देवकुलिकाओं (११वीं शती) आदि श्वेतांबर स्थलों से प्राप्त होती हैं। साथ ही गुजरात के वनासकांठा जिले में स्थित कुमारिया के ११वीं शती के शांतिनाथ एवं महावीर मंदिरों के भ्रमिकाओं के वितानों पर महावीर के जीवन दृश्यों का भी उत्कीर्णन प्राप्त होता है। इन जीवन दृश्यों में महावीर के पंचकल्याणकों (च्यवन, जन्म, दीक्षा, कैवल्य, निर्वाण) के अंकन के अतिरिक्त उनके उपसर्गों एवं यक्ष-यक्षी युगल को भी मूर्तिगत किया गया है। कुमारिया के शान्तिनाथ मंदिर (११वीं शती) की पश्चिमी भ्रमिका के वितान पर महाबीर के जीवन दृश्यों के विस्तृत उत्कीर्णन के साथ हो चतुर्भुज यक्ष-यक्षी भी निरूपित हैं । गजवाहन से युक्त यक्ष की भुजाओं में वरद्, पुस्तक, छत्रपद्म एवं जल-पात्र प्रदर्शित है। पक्षी (?) वाहन युक्त यक्षो की भुजानों में वरद, सनालपद्म, एवं फल चित्रित है। ज्ञातव्य है कि जीवंतस्वामी एवं महावीर के जोवन दृश्यों के चित्रण केवल उत्तर भारत, और वह भो केवल गुजरात एवं राजस्थान, में ही लोकप्रिय थे। साथ ही दिगंबर सम्प्रदाय के कलाकेन्द्रों पर इनकी लोकप्रियता अज्ञात है। (1) Gupte, R. S., & Mahajan, B. D., Ajanta, Ellora and Aurangobad
Caves, Bombay, 1962, pp. 129-223. (२) देखें : तिवारी, मारुतिनन्दन प्रसाद, ओसिया से प्राप्त जीवंतस्वामी को कुछ
अप्रकाशित मूर्तियाँ, विश्वभारती पत्रिका में प्रकाशनार्थ स्वीकृत । (3) देखें, Tiwari, Maruti Nandan Prasad, A Brief Survey of the
Iconographic Date at Kumbharia, North Gujarat, Sambodhi, Vol. 2, No. 1, April 1973, pp. 7-14.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org