________________
230 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 गया है । शांतिदेवी के उत्कीर्णन का एकमात्र उदाहरण खजुराहो के मन्दिर २ की महावीर मूर्ति में देखा जा सकता है। युजरात एवं राजस्थान की जिन मर्तियों में प्राप्त परिकर की गोमुख एवं वाद्यवादन करती आकृतियां भी अन्य क्षेत्रों की जिन मूर्तियों में नहीं प्राप्त होती हैं। इस क्षेत्र में महावीर के लांछन के स्थान पर सामान्यतः पीठिका लेखों में उनके नामों के उल्लेख की परम्परा विशेष लोकप्रिय रही है और अधिकतर उदाहरणों में पारंपरिक यक्ष-यक्षी युगल के स्थान पर कुबेर एवं अंबिका निरूपित है। अन्य विवरण की दृष्टि से इस क्षेत्र की महावीर मूर्तियाँ अन्य क्षेत्रों की मूर्तियों के समान है।
कर्नाटक राज्य के बल्लारी जिले में ताल्लुका हरपनहल्लि में स्थित कोगली ग्राम से महावीर की तीन विशिष्ट कांस्य प्रतिमाएँ प्राप्त होती हैं। ये सभी चित्रण सम्प्रति मद्रास गवनमेण्ट म्यूज़ियम, मद्रास में संगहोत हैं।' पहली मूर्ति में पद्मासन पर महावीर कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़े हैं, और दोनों पावों में उनके यक्ष व यक्षिणी को चित्रित किया गया है। पूर्ववर्ती २३ तीर्थकरों का एक वृत्त के रूप अंकन ध्यातव्य है। बालों के गुच्छकों का मस्तक के दोनों ओर स्कन्धों तक लटकते हुए चित्रण इस प्रतिमा की अपनी विशेषता है। दूसरी आसीन प्रतिमा में महावीर को पीठिका के मध्य में उत्कीर्ण लांछन सिंह दो घुटने टेके उपासक आकृतियों से वेष्टित है। मूलनायक के दोनों पावों में यक्ष-यक्षिणी की आकृतियाँ स्थित हैं। तीसरी प्रतिमा में मूलनायक को तीन सिंहों का अंकन करने वाले पादपीठ पर कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ा प्रदर्शित किया गया है। पीठिका के मध्य में चित्रित सिंह देवता का लांछन है, और शेष दो सिंह सिंहासन के सूचक हैं।
महावीर प्रतिमाओं के कई उदाहरण चित्तौड़ जिले में स्थित वल्लिमलाई को जैन गुफाओं में उत्कीर्ण हैं। पास-पास ही में उत्कीर्ण दो महावीर मूर्तियों में मूलनायक की आकृतियां पीठिका पर ध्यानमुद्रा में आसीन हैं। तीन भागों में विभक्त पादपीठ के दो छोरों पर प्रदर्शित सिंह सिंहासन के भाव का बोध कराते हैं, और मध्य में स्थित सिंह महावीर का लांछन है। महावीर के दोनों पाश्वों में दो चांवरधारी आकृतियां चित्रित हैं। दोनों महावीर प्रतिमाओं के पाश्वों में दो स्त्री और पुरुष आकृतियों को मूर्तिगत किया गया है, जो सम्भवतः सम्मिलित रूप से दोनों के यक्ष-यक्षिणी प्राकृतियों के लिए प्रयुक्त हुए लगते हैं।
महावीर की कई प्रतिमाएं हैदराबाद संग्रहालय में संकलित हैं। इस संग्रहालय में स्थित एक विशिष्ट प्रतिमा में कार्योत्सर्ग मुद्रा में खड़ी महावीर आकृति के चारों और अन्य २३ तीतकरों को मूर्तिगत किया गया है। नीचे की ओर दो चांवरधारी आकृतियां चित्रित हैं। स्कन्धों के ऊपर दोनों पावों में दो गजारूढ़ और वाद्यवादन करती आकृतियां उत्कीर्ण हैं। एक अन्य मूर्ति में (1) Ramachandran, T. N., Jaina Monuments and places of First
Class Importance, Calcutta, All India Sasana Conference, 1949,
pp. 64-66. (2) Rao, S. Hanumantha, 'Jainism in the Deccan". Jour. Indian
History,69,XXVI, 1948, Pts. 1-3, pp. 45-49.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org