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________________ 222 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 १०. कृतियों पर ऐतिहासिक स्वयंवर का प्रभाव: हस्तिमल्ल ने स्वयंवर प्रथा की वहुत प्रशंसा क है और अपने दो नाटकों में स्वयंवर की घटनाओं का निवेश किया है। विक्रान्तकौरव की कथा तो. स्वयंवर से सम्बन्धित थी किन्तु अंजनापवनंजय नाटक में भी स्वयंवर के अभिनय की कल्पना और अंजना के स्वयंवर का उल्लेख मूल कथा के अनुसार नहीं है । स्वयंवर की विशेष घटना के कारण हस्तिमल्ल का ध्यान स्वयंवर से सम्बन्धित नाटकों के लिखने की ओर गया होना चाहिए। भारतीय इतिहास में जयचन्द की पुत्री संयोगिता के स्वयंवर की घटना बड़ी महत्त्वपूर्ण थी। उस समय की यह घटना देश भर में चर्चा का विषय भी रही होगी । स्वयंवर की रीति का अवलम्बन करने के कारण यह महत्त्वपूर्ण घटना थी, दूसरा कारण यह था कि उसके कारण जयचन्द और पृथ्वीराज में युद्ध हुआ था । उन दोनों के परस्पर के वैमनस्य के कारण शहाबुद्दीन गौरी को भारत पर आक्रमण करने का अवसर मिला था । हस्तिमल्ल ने स्वयंवर और उसके बाद के युद्ध का उल्लेख अपने नाटक में किया है। कवि के मस्तिष्क पर तत्कालीन परिस्थिति और समाज की घटनाओं का प्रभाव होता है और उन्हें वह किसी न किसी रूप में अपने साहित्य में भी व्यक्त कर देता है। उस स्वयंवर का प्रभाव नाटककार के मस्तिष्क में रहा होगा। स्वयंवर के बाद युद्ध हुआ था उस यथार्थता को ध्यान में रखते हुए अंजना-पवनंजय नाटक में पवनंजय की प्रशंसा इसलिए की गई है कि स्वयंवर के दिन किसी ने प्रतिकूलता नहीं अपनाई।' राजा जयचन्द की पुत्री संयोगिता के स्वयंवर की घटना सन ११९० से पूर्व की है। उसी समय यह घटना देश में चर्चा का विषय बनी होगी। जयचन्द सन् ११७० में कन्नौज को गद्दी पर बैठा था। इससे प्रतीत होता है कि हस्तिमल्ल ने विक्रान्तकौरव नाटक ११६० के आसपास लिखा था। उपयुक्त प्रमाणों के आधार पर हस्तिमल्ल का समय १२वीं शताब्दी का उत्तरार्ध मानना चाहिए। उनके स्वस्थ होने के संकेतों को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि वे १३वीं शताब्दी के मध्य तक रहे होंगे। १. अंजनापवनंजय, पृष्ठ २१. २. भारत का प्राचीन इतिहास (१२०० ई० तक)-सत्यकंतु विद्यालंकार, पृष्ट ६३१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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