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________________ 220 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 उपयुक्त है। अय्यपार्य ने यह ग्रन्थ सन् १३२० में पूर्ण किया था । उसमें पार्य ने विद्वान् विशेषण भी लगाया है । उस समय उनका प्रयु प्रौढ़ विद्वान् होने की दृष्टि से लगभग ३५ वर्ष माने तो उनका जन्म १२८५ के आस-पास होना चाहिए ! अय्यपार्य हस्तिमल्ल की शिष्य परम्परा में पांचवीं पीढी में हैं। एक-एक पीढ़ी में २०-२० या २५-२५ वर्ष का समय माने तब भी हस्तिमल्ल का समय १२वीं सदी का उत्तरार्ध और १३वीं सदी के मध्य तक जा सकता है । प्रशस्ति के अनुसार हस्तिमल्ल के कुल ( विद्याकुल) में गुणवीर सूरि, गुणवीर सूरि के शिष्य पुष्पसेन, पुष्पसेन के शिष्य श्रीकरुणाकर थे, यही करुणाकर अय्यपार्य के पिता थे ।' ७. ब्रह्मसूरि के प्रतिष्ठासारोद्धार का साक्ष्य हस्तिमल्ल के वंशज ब्रह्मसूरि का समय १५ वीं सदी असंदिग्ध प्रमाणों पर आधारित नहीं है जैसा कि अय्यपार्य का समय १४ वीं सदी बिल्कुल प्रमाणित है । मेरी समझ में ब्रह्मसूरि का समय भी १४ वीं सदी है । हस्तिमल्ल से ब्रह्मसूरि को विद्वान् चौथी पीढ़ी में मानते हैं, परन्तु ब्रह्मसूरी हस्तिमल्ल की पांचवीं पीढ़ी में हुए हैं। विद्वानों की पीढ़ी में गृहस्थों की भाँति २५, २५ वर्ष का अन्तर न मानकर अधिक अन्तर भी माना जा सकता है । दूसरी बात यह भी है कि हस्तिमल्ल का एक ही पुत्र था । संभव है वह उन्हें ४० वर्ष की आयु में प्राप्त हुआ हो । हस्तिमल्ल के पिता के प्रारंभ में सन्तानें नहीं थीं, बाद में स्वर्णयक्षी के प्रसाद से प्राप्त हुई थीं । हस्तिमल्ल का एक मात्र पुत्र पार्श्वपंडित था । हस्तिमल्ल के पौत्र चन्दय का एक ही पुत्र विजय था और उसका पुत्र इन्दुविजय भी अकेला था | ब्रह्मसूरि इन्दुविजय के पुत्र थे । इस प्रकार एक-एक सन्तानवाली पीढ़ी में ३५, ३५ वर्ष का अन्तर माने तो ब्रह्मसूरि से पाँचवीं पीढ़ी १. जीयादशेषकविराजचक्रवर्ती श्रीहस्तिमल्ल इति विश्रुतपुण्यमूर्तिः तस्यान्वये वरगुणो गुणवीरसूरिः साक्षात् तपोबलविनिर्जितशम्बरारिः आसीत् तत्प्रियशिष्यकामक्रोधादिदोषरिपु विजयी तदीयशिष्योऽजनि दाक्षिणात्यः श्रीमान् द्विजन्माभिषजां वरिष्ठः जिनेन्द्रपादाम्बुरुहैकभक्तः सागारधर्मः करुणाकराख्यः तस्यैव पत्नी यदर्कमाम्बा तयोरासीत् सूनुस्सदमलगुणाढ्यः स्यादय्यपार्य विदुषा विनिर्मिता कृतवरप्रसादतः शाकाब्दे विधुवार्धिनेत्रहिमगो ( १२४१ शक ) सिद्धार्थ संवत्सरे माघे मासि " इत्यादि, जैन ग्रन्थ- प्रशस्ति-संग्रह, प्रथम भाग, पृष्ठ ११२-११५. Jain Education International श्रीपुष्पसेननामा कोविदैकगुरुः For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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