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________________ जैन नाटककार हस्तिमल्ल का समय 219 समकालीन विद्वान थे तो आशाधर का नाम पहिले क्यों आया ? इसके दो समाधान हैं। एक तो दोनों में से एक का नाम पहिले लिखना ही पड़ता, क्योंकि दोनों का एक साथ उल्लेख सम्भव नहीं है । दूसरी बात यह है कि द्वन्द्व समास में स्वर से आरम्भ होनेवाला पद पहले रखा जाता है तथा वह पद भी पहले रखा जाता है जिसमें कम मात्रायें (स्वर) हों।' एक बात यह भी हो सकती है कि पं० आशाधर ने अनगारधर्मामृत और सागारधर्मामृत जैसे चरणानुयोग के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे थे, जिसके कारण वे धार्मिक प्राचार्य की दृष्टि से भी मान्य थे। इसलिए भी उनका नाम समकालीन होने पर भी पहले रखा गया होगा । इस दष्टि से हस्तिमल्ल पं० आशाधर के समकालीन हैं। पं० आशाधर ने प्रशस्ति में धारा नरेश विन्ध्यवर्मा का उल्लेख किया है।३ विन्ध्यवर्मा का समय वि० सं० १२१७ से १२३७ (सन् ११६१ से ११८१) माना गया है। विद्वानों का अनुमान है पं० आशाधर मांडलगढ़ (अजमेर) छोड़कर विन्ध्यवर्मा के समय में धारानगरी में आए थे। यदि पं० आशाधर का जन्म समय १२ वीं सदी का उत्तरार्ध माना जाय तो हस्तिमल्ल का समय ठीक बैठता है । पं० आशाधर का अन्तिम ग्रन्थ अनगार धर्मामृत है जो सम्वत् १३०० (सन् १२४४) में समाप्त हुआ था। ६. जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय की प्रशस्ति का आधार : अय्यपार्य ने जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय की अन्त्य प्रशस्ति में अपनी परम्परा दी है। इसे पिता-पुत्र की वंशपरम्परा न मानकर गुरु-शिष्यपरम्परा मानना अधिक १. (क) अल्पाच तरम् २.२-३४ सिद्धान्त कौमुदी तथा १-३-१०० जैनेन्द्रव्याकरण, (ख) अजाद्यदन्तम् २-२-३३ सिद्धान्त कौमुदी। २. 'अभ्यहितं च' वार्तिक सिद्धान्तकौमुदी तथा ‘यच्चार्चितं द्वयोः' कातंत्र व्या० २-५-१३, पृष्ठ १०८. ३. (अ) आशाधर त्वं मयि विद्धि सिद्धं निसर्गसोदर्यमजर्यमार्य सरस्वतीपुत्रतया यदेतदर्थं परं वाच्यमयं प्रपञ्चः इत्युपश्लोकितो विद्वद् विल्हेणकवीशिना श्रीविन्ध्यभूपतिमहासान्धिविग्रहिकेण यः । ____ (सागरधर्मामृत भूमिका, पृष्ठ ७) (आ) म्लेच्छेशेन सपादलक्षविषये व्याप्ते सुवृत्तक्षति त्रासाद् विन्ध्यनरेन्द्रदोः परिमलस्फूर्जत्रिवर्गौजसि प्राप्तो मालवमण्डले बहुपरीवारः पुरीमावसन् यो धारामपज्जिनप्रमिति वाक्शास्त्रे महावीरतः (अनगारधर्मामृत, अन्त्यप्रशस्ति, पृष्ठ ६८७) नलकच्छपुरे श्रीमन्नेमिचैत्यालये ऽसिधत् विक्रमाब्दशतेष्वैषा त्रयोदशसु कार्तिके । (वही, पृष्ठ ६९१) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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