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________________ 218 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 चेष्टा वाला था । " विक्रान्तकौरव के अनुसार भीम सोमेश्वर जयकुमार के विपक्ष में युद्ध करता था । ऐतिहासिक भीम ने भी सांभर नरेश सोमेश्वर के साथ युद्ध किया था । मेरुतुगांचार्य ने प्रबन्धचिन्तामणि में भीमराजा का विशेष विवरण दिया है। उक्त विवरण से अनुमान किया जा सकता है कि हस्तिमल्ल ने विक्रान्तकौरव में तत्कालीन राजा भीम का उल्लेख किया है । इस उल्लेख से हस्तिमल्ल को १२वीं सदी के उत्तरार्ध में मानने की पुष्टि होती है । ३. नरसिंहाचार्य के कथन का आधार : कर्नाटककविचरित्र के कर्ता आर० नरसिंहाचार्य ने यद्यपि हस्तिमल्ल का समय १२६० माना है किन्तु उन्होंने पार्श्वपंडित का समय एक स्थान पर १२०५, दूसरे स्थान पर १२२२ माना है । पार्श्वपण्डित हस्तिमल्ल का एक मात्र पुत्र था, यह हस्तिमल्ल की प्रौढ़ अवस्था में हुआ होगा । इस आधार पर हस्तिमल्ल का समय उनके पुत्र पार्शपण्डित के समय के पूर्व १२वीं सदी का उत्तरार्ध होना चाहिए । भारत के प्रदेशों की स्थिति का साक्ष्य : विक्रान्तकौरव में गुज्जरात्र, केरल, पाण्डय, चोल, काश्मीर और दशार्ण देशों का उल्लेख आया है । कवि ने स्वयम्बर को भीड़भाड़ तथा महिमा बताने के लिए अनेक देशों के राजाओं के पहुँचने का उल्लेख किया है । नाटक लिखते समय वर्तमान के समय के देशों का उल्लेख स्वाभाविक है । १२वीं सदी में उपर्युक्त सभी राज्य अस्तित्व में थे । १४वीं सदी का समय मानते हैं तो उस समय उनमें से कई राज्यों का अस्तित्व मिट चुका था । केरल और पाण्ड्य १३वीं सदी में, चोल १२वी सदी में अपना अस्तित्व खो चुके थे । काश्मीर में भी १४वीं सदी में मुसलिम राज्य हो चुका था । इसके अतिरिक्त यदि विक्रान्तकौरव नाटक की संस्कृति को देखें तो वह भी १२वीं सदी के अन्त और १३वीं सदी के आरम्भ के अनुरूप है । वाराणसी की विलासिता तथा संस्कृति का वर्णन गुजरात के डाढ़ीवाले सैनिकों का वर्णन उक्त मान्यता के विपरीत नहीं है । ५. आशाधर के समकालीन होने का अनुमान : अय्यपा नामक विद्वान् ने जो प्रतिष्ठापाठ शक्-सम्वत् १२४१ सन् १३२० में लिखा था । उन्होंने उसकी आरम्भिक प्रशस्ति में आशाधर और हस्तिमल्ल के नामों का उल्लेख किया है । उस प्रशस्ति में यद्यपि आशाधर का उल्लेख पहिले और हस्तिमल्ल का उल्लेख बाद में है । इस उल्लेख से आशावर को हस्तिमल्ल से पूर्ववर्ती ही नहीं समकालीन भी समझ सकते हैं । क्योंकि दोनों विद्वानों का उल्लेख एक ही वाक्य में है । अब प्रश्न यह है कि यदि दोनों ४. १. २. गुजरात का इतिहास प्रथम भाग उत्तरार्ध, पृष्ठ २२७, २४२. 'यश्वाशाधर हस्तिमल्ल कथितो' Jain Education International आरम्भिक प्रशस्ति जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय, ले० – -अय्यपार्य. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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