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________________ 208 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 है कि जनमत में कोई रामकथा रही हो, और वह लुप्त हो गई हो, राजा श्रेणिक उसका नवीनीकरण चाहता हो। या रामकथा की लोकप्रियता देखकर वह भी चाहता हो कि जैनमत के अनुसार उसका रूप गढ़ा जाय । स्वयंभू वाल्मीकिरामायण और विमलसूरि के पउमचरिय (प्राकृत) का उल्लेख नहीं करते, यद्यपि वे इन दोनों से प्रभावित हैं, आदि रामायण तीर्थंकर महावीर के बहुत बाद में लिखी गई, अतः उसे लेकर श्रेणिक की शंकाए वस्तुतः कवि स्वयंभू के समय की शंकाएं हैं जो वास्तव में 'रामकथा के बारे में उठ रही थीं। तुलसी अपनी रामकथा के स्रोतों और परम्परा के सम्बन्ध में स्पष्ट हैं। उसकी पौराणिक परम्परा शिव (अगस्त्य) से, और काव्य-परम्परा आदि कवि से सम्बद्ध है। वह यह नहीं बताते कि दोहा-चोपाई-शैली और भाषा-निबद्ध प्रबन्ध' की प्रेरणा उन्होंने कहीं से ली। यद्यपि वह हरिकथा, और उसके कवियों की अनंतता का मुक्तकण्ठ से स्वीकार करते हैं। तुलसी के लिए रामकथा साधन है और रामभक्ति साध्य है। उनकी सबसे बड़ी समस्या है कि महान् आध्यात्मिक परम्परा के रहते हुए भी उनके युग का भारतीय समाज दीन और दरिद्र क्यों ?: अस प्रभ हृदय अछत अविकारी । सकल जीव जग दीन दुःखारी ।। वा० कां०४।२५ अतः उनका सबसे बड़ा काव्यगत मूल्य यही है कि उनके युग का व्यक्ति अपने मन में असीमसत्ता का साक्षात्कार कर, सांस्कृतिक हीनता की स्थिति से ऊपर उठ सके, और अपने व्यक्तित्व की पुनर्रचना कर सके। स्वयंभू के लिए भी रामकथा निर्मल और पुण्य पवित्र है। काव्ययात्रा : तीर्थयात्रा 'चरिउ' की भाषा देशी अर्थात् साहित्यिक अपभ्रंश है । कवि इसे सामान्यभाषा भी कहता है, वह ग्राम्यभाषा (गामिल्ल भासा से) रहित है। (प०च०१.३) । तुलसी का मानस भी भाषा-निबद्ध है, भाषा से उनका अभिप्राय अवधी से है। स्वयंभ ने चरिउ को रड्डावद्ध काव्य कहा है, उनके पुत्र त्रिभुवन स्वयंभू उसे पद्धड़िया बँध कहते हैं। 'चरिउ' की शैली 'कड़वकशैली' है जिसमें तुकांत कई द्विपदियों (दो पंक्तियों) का गुच्छ रहता है, अन्त में घत्ता के रूप में दूसरा छन्द जो एक कड़वक को दूसरे कड़वक से अलग करता है। 'मानस' की 'दोहा-चौपाईशैली' भी यही है। अन्तर केवल यह है कि उसमें चौपाई मुख्य छन्द है; और चौपाई का मूल आधार 'दुवई' (द्विपदी) है। अपने काव्यों के शिल्प के संवन्ध में भी दोनों ने 'रूपकों में बहुत कुछ कह दिया है। स्वयंभू के नदी के रूपक से स्पष्ट है कि उसमें काव्य-परम्परा का पूर्ण निर्वाह है । तुलसी, जहाँ 'मानस' के रूपक में अपने काव्य की पौराणिक परम्परा का उल्लेख करते हैं, वहीं काव्यसरिता वाले रूपक काव्यगत शिल्प और पात्रों की विशेषताओं का उल्लेख करते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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