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'चरिउ' और 'मानस' डा० देवेन्द्रकुमार जैन
चरित का अर्थ :
'चरिउ' और 'मानस' से मेरा अभिप्राय क्रमशः 'पउमचरिउ' ओर 'रामचरितमानस' से है । एक के रचयिता महाकवि स्वयंभू (६ वीं सदी का मध्योत्तरकाल) और दूसरे के महाकवि तुलसीदास ( १६ वीं सदी का मध्योत्तर काल ) । एक अपभ्र ंश में है और दूसरा अवधी भाषा में । स्वयंभू महाराष्ट्र से प्रव्रजित होकर कर्नाटक के निवासी थे, जबकि तुलसी पूर्वी उत्तर प्रदेश (बाँदा काशी और अयोध्या) के । स्वंभू के माता-पिता का नाम पद्मिनी और मारुतदेव था जबकि तुलसी के माता-पिता का नाम हुलसी और आत्माराम दुबे था । स्वयंभू की पत्नियाँ थी, आदित्याम्मा और श्रमृताम्मा, जो उनकी साहित्यसाधना में सक्रिय रूप से सहायक थीं । स्वयंभू सद्गृस्थ थे । तुलसी की पत्नी रत्नावली थी, जिसकी प्रताड़ना कवि के मोहभंग का कारण बनती है और कवि सन्यासी के रूप में राम के प्रति समर्पित हो जाता है । स्वयंभू की रचनाओं में 'चरिउ' का वही स्थान है जो तुलसी की रचनाओं में मानस का । जैन परम्परा के अनुसार 'पद्म' राम का एक नाम है क्योंकि उनके पैरों में कमल का शुभ चिह्न था, अतः 'पउमचरिउ' का अर्थ हुआ पद्मचरित अर्थात् राम का चरित, जो रामायण का ही पर्यायवाची शब्द है, जिसका अर्थ है राम का अयन अर्थात् चेष्टा व्यवसाय या व्यापार । 'चरित' का अर्थ लीला भी है । मानस में लीला और चरित का समान अर्थ है । दशरथपुत्र के रूप में अवतार लेकर राम यद्यपि प्राकृत जन ( सामान्य जन ) की तरह आचरण करते हैं, परन्तु मूल रूप में वे अपने आचरण में पूर्णरूप से तटस्थ हैं, अतः उसे लीला भी कहते हैं । रामचरित के साथ 'मानस' जुड़ने का कारण यह है कि शिव ने इसे रचकर अपने मन में धारण किया था और समय आने पर पार्वती को बताया । (बा० का० ५,६.७।३५) । दूसरे यह मानसरोंगों को शांत करनेवाला है ।
एक पवित्र कथा :
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स्वयंभू का चरिउ जैनपरम्परा से प्रभावित है और 'मानस' वैदिकपरम्परा से । चरिउ की रामकथा महावीर तीर्थंकर की वाणी से निकली । फिर वह गणधर गौतम, सुधर्मा, प्रभव, अनुत्तरवाग्मी कीर्तिधर तथा प्रा० रविषेण से होती हुई स्वयंभू को प्राप्त होती है । तीर्थंकर महावीर के समवशरण का मुख्य प्रश्नकर्त्ता श्रेणिक, गौतम से " जैनमत के अनुसार रामकथा सुनना चाहता है, क्योंकि दूसरे मत में यह कथा उल्टी सुनी जाती है ।" श्रेणिक परमत की जिस कथा का उल्लेख करता है, वह वस्तुतः वाल्मीकि की रामकथा है ? हो सकता
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