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________________ 170 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 उक्त प्रमाणों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भगवती आराधना का रचनाकाल ई० प्रथम द्वितीय शती रहा हो । डॉ० हीरालालजी ने इस सन्दर्भ में कोई निश्चित शताब्दी न देकर इस ग्रन्थ को ई० की प्रारम्भिक शताब्दियों का माना है । ' भाषा : भगवती आराधना की भाषा निःसन्देह प्राचीन प्रतीत होती है । उसमें शौरसेनी प्राकृत का विशेष प्रयोग हुआ है । यत्र-तत्र अर्धमागधी का भी मिश्रण हो गया है । जिणवयण, पवयण ( गाथा, ४६ ) आदि में चकार का लोप और यश्रुति जैन शौरसेनी की विशेषता है । त्र को त्त, (चरित, भग० ६.१४ ), भू को हो ( होदि), थ को ह ( अहवा भग० ८ ), दूण प्रत्यय ( लदूण, भग० ५६, होण भग० १२२६) आदि का प्रयोग भगवती आराधना में बहुत मिलते हैं । ये सभी शौरसेनी प्राकृत की विशेषताएँ हैं । इसी प्रकार अर्धमागधी की भी कुछ विशेषतायें भगवती आराधना में मिलती हैं । उदाहरणार्थ ध को ह (तिविहा, भग० ५० ), ऊण प्रत्यय ( काऊण, १६५१, १२८० आदि), प्रथमान्त ओ, सप्तमी fम्म आदि विभक्तियों का प्रयोग संयुक्त रूप में प्राप्त होता है । होई ( गाथा १६ ) और कोई ( गाथा २४ ) जैसे शब्दों का भी प्रयोग दृष्टव्य है जिनका भाषावैज्ञानिक अध्ययन किया जाना आवश्यक है । भगवती आराधना की यह शौरसेनी और अर्धमागधी की संयुक्त प्रयोगशैली ग्रन्थ की प्राचीनता सिद्ध करती है । इस प्रकार उक्त प्रमाणों के आधार पर यह निश्चित किया जा सकता है कि भगवती आराधना ई० प्रथम अथवा द्वितीय शती का ग्रन्थ है जिसके रचयिता आचार्य शिवकोटि के व्यक्तित्व से भिन्न रहे हैं । इस ग्रन्थ का विशेष अध्ययन अभी अपेक्षित है । १. भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ० १०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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