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________________ 153 सिद्ध साहित्य का मूल स्रोत निर्वाण की प्राप्ति संभव है।" "सुत्तनिपात" में भी स्थान-स्थान पर हृदय की स्वच्छता, संयम, सत्य तथा जीवन की पवित्रता पर बल दिया गया है। एकबार हल जोतते हुए कसिभारद्वाज के प्रश्नोत्तर स्वरूप भगवान बुद्ध ने जब यह कहा कि-"ब्राह्मण! मैं भी जोताई, बोआई करता हूँ, जोताई बोआई करके खाता हूँ"। तब उस ब्राह्मण के आश्चर्य की सीमा न रही। जब उसने बुद्ध की कृषि और उसके योग्य उपकरणों को जानने की इच्छा व्यक्त की तब उन्होंने कहा"श्रद्धा मेरा बीज है, तप वष्टि है, प्रज्ञा मेरा युग और नङ्गल हैं, लज्जा नङ्गल दण्ड है, मन जोत है, स्मति मेरी फाल और छकुनी है। काया से संयत हूँ, वचन से संयत हूँ, आहार के विषय में संयत हूँ, सत्य से निराई करता हूँ। निर्वाण-रति मेरा प्रमोचन हैं। निर्वाण की ओर ले जानेवाला वीर्य मेरे जोते हुए वैल हैं। वह निरन्तर उस ओर जा रहा है जहाँ जाकर कोई शोक नहीं करता । यह मेरी खेती इस प्रकार की गई है। यह अमृतफल देनेवाली है, ऐसी खेती करके मनुष्य सब दुखों से मुक्त हो जाता है।"२ यज्ञ करनेवाले सुन्दरिक भारद्वाज ने जब बुद्ध से उनकी जाति पूछी, तब उन्होंने कहा-"जाति के विषय में न पूछो, आचरण के विषय में पूछो । लकड़ी से आग पैदा होती है, इसी प्रकार नीच कुल में पैदा होकर भी मुनि १. सिञ्च भिक्खु ! इमं नावं सित्ता ते लहुमेस्सति । छेत्वा रागंच दोसंच ततो निब्बानमेहिसि ॥-धम्मपद-३६९--१०-१५१. २. अहं पि खो ब्राह्मण ! कसामि च वपामि च, कसित्वा च वपित्वा च भुंजामीति । न खो पन भय पस्माम भो तो गोतमस्स युगं वा नांगलं वा फालं वा पाचनं वा - बलिबद्दे वा अथ च पन भवं गोतमो एवं आह अहं पि खो ब्राह्मण । कसामि च वपामि च कसित्वा च वपित्वा च भुजामीति । अथ खो कसिभारद्वाजो ब्राह्मणो भगवन्तं गाथाय अज्झमासि : कस्सको पटिजानासि न च पस्साम ते कसि । कसि नो पुच्छितो ब्रूहि यथा जानेमु ते कसि ॥ सद्धा बीजं तपो बुट्टि पा मे युगनंगलं । हिरि ईसा मनो योत्तं सति मे फालपाचनं । कायगुत्तो वचीगुत्तो आहारे उदरे यतो । सच्चं करोमि निदानं सोरच्चं मे पमोचनं ॥ विरियं मे धुरधोरव्हं योगक्षेमाधिवाहनं । गच्छति अनिवत्तन्तं यत्थ मन्त्वा न सोचति ॥ एवमेसा कसी कट्टासा होति अमतप्फला । एतं कसि कसित्वान सब्बदुक्खा पमुच्चतीति । -सुत्तनिपात-सं-डॉ०-~-यू० धम्मदतन-कसिभारद्वाज सुत्तपृ०-१४-१५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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