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________________ 126 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 लगा ही नहीं।' शब्द और अभिव्यक्त की प्रणाली के अन्तर के बावजूद भी दो भिन्न धर्मावलंवियों के विचारों का यह साम्य आश्चर्य में डालनेवाला है। रामसिंह कहते हैं कि 'हे पंडित ! तुमने इतना पढ़ा कि तुम्हारा तालू सूख गया, पर फिर भी मूर्ख ही रहा। इससे तो अच्छा है कि तुम उस एक ही अक्षर को पढ़, जिससे शिवपुरी गमन हो।२ यहाँ रामसिंह ने शिवपुर जाने की सलाह दी है और उधर गुरु गोरखनाथ को शिवलोक बड़ा प्रिय है। बार-बार वे शिवपुरी की चर्चा करते हैं। यही नहीं, नाथपंथ में शिवत्व को प्राप्त कर लेने वाले योगी को अत्यधिक सम्मान की दष्टि से देखा जाता है। सच तो यह है कि जो साधक सिद्धि पा लेता है स्वयं महादेव उसकी सेवा करते हैं। जिसने घन, यौवन की आशा जीत ली है तथा कामिनी की लालसा से जो दूर है उसकी सेवा पार्वती करती हैं। भिन्न दर्शनों के जाल में फंसे लोगों की आलोचना करते हुए रामसिंह कहते हैं कि षट दर्शन के धंधे में पड़कर उनके मन की भ्रांति न मिटी। एक देव के छः भेद उन्होंने किये, फिर भी मोक्ष न मिला ।" उन बहुत से अक्षरों के अध्ययन से क्या लाभ जो कुछ समय में क्षय को प्राप्त होते हैं। जिसके अध्ययन से मुनि अनक्षर (अक्षय) हो जाते हैं उसे मोक्ष कहा जाता है।६ ठीक इसकी प्रतिध्वनि सरहपा के उस उद्गार में मिलती है जहाँ वे अक्षर को तब तक घोलते जाने की वात कहते हैं जब तक कि साधक अनक्षर न हो जाय। उन्हें इस बात के लिए दुःख है कि सारे संसार में अक्षर (मथ्याज्ञान) की बाढ़ आई हुई है और निरक्षर कोई नहीं है। मुनि रामसिंह और सरह के इन उद्गारों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर पता चलता है कि 'पाहुड़ १. अणापरहिं ण मेलविउ, गमणागमण ण भाग्ग । तुस कुटुंते काल गउ, चउल हत्थ ण लाग्ग । -दोहा कोश-सं०-राहुल सांकृत्यायन-५४; पृ० १४. २. बहुयई पढियइं मूढ पर तालू सुक्कइ जेण । एक्कु जि अक्खरु तं पढहु सिवपुरि गम्मइ जेण ।। -पाहुड़दोहा-९७; १० ३० साथ ही-सावयधम्म दोहा-८; पृ० ४. ३. गोरखबानी-सबद संख्या-१८; पृ० ७. ४. वही- , -१९; पृ० ७. ५. छह दसणधंधइ पडिय भणहं ण फिट्टिय भंति । एक्कु देउ छह भेउ किउ तेण ण मोक्खहं जंति ॥ -पाहुड़ दोहा-११६; पृ० ३४. ६. किं किज्जइ बहु अक्खरहं जे कालि खउ जंति । जेम अणक्खरु संतु मुणि तव वढ मोक्खु कहति ॥ -पाहुड़ दोहा-१२४; पृ० ३६. ७. दोहा कोश-सं०-राहुल सांकृत्यायन-२६; पृ० ६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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