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________________ सिद्ध साहित्य का मूल स्रोत डा० नागेन्द्र प्रसाद सिद्ध साहित्य का स्वर विद्रोहात्मक है। सरहपा, कण्हपा, लुइपा आदि सिद्ध साधकों ने अपने दोहों, पदों और चर्यागीतियों में नियम-व्रत, पूजा-पाठ, उपासना , कर्मकाण्ड आदि की भरपूर आलोचना और निर्मम भर्त्सना की है। पाखण्ड और आडम्बर पर उन्होंने निर्मम प्रहार किया है। परम्परा की बेड़ियों में जकड़ें और वेश-भूषा मात्र के सन्तों और तपस्वियों पर उनकी चोट इतनी करारी बैठी है कि वे तिलमिला उठते हैं। सिद्धों का तर्क इतना अकाट्य होता है कि वे सहम उठते हैं। अपने प्रतिपक्षियों को चुटकी में निरुत्तर कर देना तो जैसे सिद्धों की सहज कला है । सिद्ध मूलतः साधक और विचारक हैं और इस कारण अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए उन्होंने रहस्यमय उक्तियों का सहारा लिया है। कभी-कभी तो वे विरोधात्मक कथन की प्रणाली का भी उपयोग करते हैं। उलट-वासियों और प्रतीकों के कारण उनकी उक्तियों में एक सहज चमत्कार आ गया है । कोई भी साहित्य अपने युग और परिस्थिति की उपज हुआ करता है। वह अपने आप में अकेला और परम्परा से अलग नहीं रह कर अपने पूर्व के युग, परिस्थिति और साहित्य से प्रभावित होता है। यही कारण है कि सिद्ध साहित्य की पृष्ठभमि की छानबीन करने पर पता चलता है कि सिद्धों को सिद्धान्तों और विचारों की एक जीवंत परम्परा विरासत में मिली, जिसका सफल निर्वाह उन्होंने किया। सिद्धों ने अपने पूर्व के युग से परम्परा और प्रेरणा ग्रहण की और वे स्वयं अपने पीछे एक परम्परा छोड़ गए जिसका अनुसरण गोरख, कबीर, जायसी आदि संतों ने किया। उनके सहजयान की यही परम्परा आगे चलकर वैष्णव सहजिया संतों, बंगाल के बाउलों और मरमिया संतों के उद्गारों में व्यक्त हुई। जिस समय वज्रयानी सिद्ध अपने विचार व्यक्त कर रहे थे वह समय अपभ्रश साहित्य का मध्याह्न काल था। अपभ्रश साहित्य की रचना पश्चिमी प्रदेशों में पूरे जोरशोर से की जा रही थी। जैन मुनि अपनी साधना के प्रसंग में धार्मिक और आध्यात्मिक विचार व्यक्त किया करते थे। यह विचित्र संयोग है कि वज्रयानी सिद्धों और रामसिंह, देवसेन, जोगीन्दु देव आदि जैन मुनियों का समय प्रायः एक ही है।' इधर सिद्ध परंपरा, रूढ़ियों, वाह्याचारों और वाह्या १. औब्सक्योर रेलिजस कल्ट्स --- डा० शशिभूषण दारा गुप्त, पृ० ५८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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