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________________ 123 संतकम्मपाहुड और छक्खंडागम यहाँ ऊपर उद्धृत सत्कर्मपंजिका के प्रथम वाक्य को भी दृष्टि में लेना चाहिये, जिसमें कहा है कि महाकर्मप्रकृतिप्राभत के चौबीस अनुयोगद्वारों में से कृति वेदना का वेदनाखण्ड में, चार अनुयोगों में से बन्ध बधनीय का बर्गणा खण्ड में, बंधविधान का महाबन्ध में और वन्धक का खुद्दाबन्ध में विवेचन किया। शेष अठारह अनियोगद्वारों का विवेचन संतकम्म में है। जयधवला के १५वें अधिकार में कहा है: 'एत्थ एदाओ भवपच्चइयाओ एदाओ च परिणामपच्चयाओ त्ति एसो अत्थ-विसेसो संतकम्मपाहुडे वित्थारेण भणिदो।' अर्थात् ये प्रकृतियाँ भवप्रत्यया हैं और ये प्रकृतियाँ परिणामप्रत्यया है यह अर्थविशेष संतकम्मपाहुड में विस्तार से है। संतकम्म के उपक्रम अनियोगद्वार में अनुभाग उदीरणा का कथन करते हुए भवप्रत्यया और परिणामप्रत्यया का कथन पृ० १७२ से १७४ तक किया है तथा इसके अन्तिम अनुयोगद्वार में, जिसका नाम, अल्पबहुत्व है, सत्कर्म को लेकर ही अल्पवहुत्व का विवेचन है। इससे भी ज्ञात होता है कि निबन्धन प्रादि १८ अनुयोगद्वार प्रधान रूप से सत्कर्म से ही सम्बद्ध थे, इसी से उनके संकलन को संतकम्म नाम दिया है । इसके साथ ही जयधवला भाग ७ (पृ० २६०) में संतकम्ममहाधिकार को कृति वेदना आदि चौवीस अनुयोगद्वारों में प्रतिवद्ध बतलाया है। यथा 'संतकम्ममहाधियारे कदि वेदणादि चउबीसमणियोगद्दारेसु पडिवद्धो' शायद इसी से विबुध श्रीधर ने अपने श्रुतावतार में धवलाटीका को सत्कर्मटीका कहा है । यथा 'सत्कर्मनामटीका द्वासप्ततिसहस्र प्रमितां धवलानामाङ्किता' किन्तु संतकम्ममहाधिकार यद्यपि महाकर्मप्रकृतिप्रभत के चौबीस अनुयोगद्वारों में प्रतिवद्ध है किन्तु वह एक महाधिकार है, इसे नहीं भूलना चाहिये और चौवीस में से अठारह अधिकारों को समेटे हुए हो वह महाधिकार तो कहलायेगा ही। किन्तु छ: खण्डों की रचना करनेवाले भूतवलि ने जैसे पृथक्-पृथक् खण्डों को पृथक्-पृथक् नाम दिया उस तरह छहों को कोई एक नाम नहीं दिया यह स्पष्ट है । अतः सन्तकम्मपाहुड नाम का व्यवहार षट्खण्डागम के लिए तो व्यवहृत नहीं ही हुआ है, वह उससे पृथक् ही था। ऐसा ऊपर के विवेचन से स्पष्ट होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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