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________________ 122 VAISHALI INSTITUTE RESEARCH BULLETIN NO. 2 क्यों नहीं करना ? इसका समाधान किया है कि महाबन्ध का व्यापार तो प्रथमसमय सम्बन्धी बन्ध में है । अर्थात् संतकम्मपाहुड में बन्ध के दूसरे समय से लेकर जब तक कर्म पुद्गल सत्ता रूप में रहते हैं तब तक का कथन है । इसी से उसका नाम सन्तकम्मपाहुड है । उक्त कथन से यह स्पष्ट है कि संतकम्मपाहुड महाबन्ध से भिन्न है । अतः डा० हीरालालजी का यह लिखना ठीक नहीं है कि महाधवल का मूल ग्रन्थ संतकम् है । सत्कर्मपंजिका में ही यह प्रश्न करके उसका समाधान किया गया है कि तब फिर संतकम्मपाहुड क्या है ? लिखा है: - संतकम्मपाहुडं णाम कदमं ? महाकम्मपयडिपाहुडस्स चउवीसमणिप्रोगद्दारे विदिणाहियारो वेयणा णाम । तस्स सोलस प्रणिगद्दारेसु चउत्थ-छट्टमसत्तमाणियोगद्दाराणि दब्वकालभावविहाणणामधेयाणि । पुणो तहा महाकम्मपयडीपाहुडस्स पंचमो पयडीणामहियारो । तत्थ चत्तारि ग्रणियोगद्दाराणि - कम्माणं पयडि-ट्ठिदि- अणुभागपदेससत्ताणि परूविय सूचिदुत्तरपयडिट्ठिदि अणुभागप्पदेसत्तत्तादो । एदाणि संतकम्मपाहुडं णाम । मोहणीयं पडुच्च कसायपाहुड पि होदि ।' (पु० १५, सत्कर्म, पृ०१८ ) अर्थात् संतकम्मपाहुड नाम किसका है ? महाकर्म प्रकृतिप्राभृत के चौबीस प्रणियोगद्वारों में से दूसरे अधिकार का नाम वेदना है । उसके सोलह अणियोगद्वारों में से चौथे, छठे और सातवें अणियोगद्वारों का नाम द्रव्यविधान, कालविधान, और भावविधान है । पुनः उसी महाकर्म प्रकृतिप्राभृत का पाँचवा प्रकृति नामक अधिकार है । उसमें चार अनुयोगद्वार हैं जो आठों कर्मों के प्रकृति स्थिति, अनुभाग और प्रदेश सत्त्व का कथन करके उत्तर प्रकृति स्थिति अनुभाग और प्रदेश सत्त्व को सूचित करते हैं । इनका संतकम्मपाहुड नाम है । मोहनीय को लेकर कसायपाहुड होता है ।' इस कथन के अनुसार वेदना कुछ भाग तथा प्रकृति अनुयोगद्वार का नाम संतकम्मपाहुड हुआ । षट्खण्डागम के चतुर्थ खण्ड वेदना में उसके चौथे, छठे और सातवें अणियोगद्वार आते हैं । यहाँ यह उल्लेखनीय है कि वेदनाक्षेत्र - विधान को संतकम्मपाहुड में नहीं लिया है। इसी में महामत्स्य को सातवें नरक में उत्पन्न कराया है और लिखा है कि संतकम्मपाहुड में निगोद में उत्पन्न कराया है तथा पाँचवा प्रकृति नामक अनुयोगद्वार पाँचवें वर्गणा खण्ड में आया है किन्तु उसमें केवक प्रकृतिसत्त्व का विवेचन है, स्थिति आदि का नहीं है । इस तथा धवला पु० १५ के उद्धरण से इतना तो स्पष्ट है कि संतकम्मपाहुड में केवल कर्मों की सत्ता का विवेचन है, वन्ध और उदय का नहीं । अतः इतना तो स्पष्ट है कि प्रस्तुत षट्खण्डागम तथा महाबन्ध से संतकम्मपाहुड भिन्न है । यद्यपि ये सब महाकर्मप्रकृतिप्राभृत की ही उपज हैं । उसी के अमुकअमुक अनुयोगों को लेकर इनकी रचना की गई है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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