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________________ संतकम्मपाहुड और छक्खंडागम ___117 किया है उससे इसका स्पष्ट समर्थन होता है। उसमें (पु० ९, पृ० १३३) कहा है कि प्राचार्य धरसेन भूतबलि पुष्पदन्त को समस्त कर्मप्रकृतिप्रभृत सौंप दिया । ____ 'तदो भूदबलिभडारयेण सुदणई पवाह वोच्छेद भीएण भवियलोगाणुग्गएट्ठ महाकम्मपयडिपाहुडभुवसंहरिऊण छखंडाणि कयाणि ।' __अर्थात् उसके पश्चात् भूतवलि भट्टारक ने श्रुतनदी के प्रवाह के विच्छेद के भय से भव्य लोगों का अनुग्रह करने के लिये महाकर्म प्रकृति प्राभूत का उपसंहार करके छः खण्ड किये ।' यहाँ पुष्पदन्त का नाम नहीं है क्योंकि पुष्पदन्त ने तो केवल विंशतिसूत्रों की रचना की थी जो प्रथम खण्ड जीवट्ठाण का आदि अंश है। शेष सब रचना तो भूतवलि की ही है। उन्होंने ही महाकर्मप्रकृतिप्राभूत का उपसंहार करके छः खण्ड किये थे। अतः केवल जीवट्ठाण की अपेक्षा दोनों कर्ता हैं। किन्तु पूर्ण षट्खण्डागम के कर्ता भूतवलि ही हैं। अतः धवला के प्रारम्भ में जो 'खंडसिद्धान्त' नाम आया है वह समस्त षट्खण्डागम के लिये नहीं है किन्तु जीवट्ठाण के लिये है, क्योंकि जीवदाण उसका एक खण्ड है। इसी तरह प्रत्येक खण्ड 'खंडसिद्धान्त' है और इन सब खण्डों के लिये षट्खण्डागम नाम सर्वप्रथम इन्द्रनन्दि के श्रुतावतार में ही मिलता है। यथा-'षट्खण्डागमरचनाभिप्रायं पुष्पदन्तगुरोः । एवं 'षट्खण्डागम रचनां प्रविधाय भूतबल्यार्यः ।' वीरसेन स्वामी ने धवला जयधवला में उन उन खण्डों के नाम से ही उनका उल्लेख किया है । यथा 'कथमेतदवगम्यते ? वर्गणासूत्रात्'-(धवला पु० १, पृ० २९०)। 'एदम्हादो खुद्दबंधसुत्तादो जाणिज्जदो'-(पु० ३, पृ० २३१, २४६, २०६ आदि)। 'एत्थति जीवट्ठाणे वुत्ताओ'-पु० ३, पृ० २७६. 'एदेण वेयणासुत्तेण सह बिरोहो'-पु० ३, पृ० ३७. 'महाबन्धे जहण्णट्ठिदिबन्धाच्छेदे'-पु० ७, पृ० १६५. जीवस्थान की तरह खुद्दाबंध, वेदना, वर्गणा, महाबन्ध ये सब पृथक-पृथक खण्डों के नाम हैं। प्रत्येक खण्ड में अन्य खण्डों का निर्देश उन-उन खण्डों के नामों से ही किया है जैसा ऊपर के उद्धरणों से स्पष्ट है। संतकम्मपाहुड धवला में एक अन्य ग्रन्थ का भी नामोल्लेख मिलता है वह है संतकम्मपाहुड । प्रथम भाग के पृष्ठ २१७ पर कहा है कि यह सन्तकम्मपाहड का उपदेश है। कसायपाहुड का उपदेश इससे भिन्न है और इन दोनों को आचार्य-रचित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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