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________________ संतकम्मपाहुड और छक्खंडागम सिद्धान्ताचार्य कैलाशचन्द्र शास्त्री आज साढ़े चार दशक पूर्व जब षट्खण्डागम का प्रथम भाग प्रकाशित हुआ था, तब धवला, जयधवला और महाबन्ध, जो महाधवल कहा जाता था, अप्रकाशित थे । फिर भी उसके सम्पादक डा० हीरालालजी ने अपनी प्रस्तावना में षट्खण्डागम का जो परिचय दिया था वह बहुत ही श्लाघनीय था और उनकी कुशल अनुसन्धानपरता का परिचायक था । किन्तु सिद्धान्त-ग्रन्थों के प्रकाश में आने से उसमें कुछ संशोधन आवश्यक प्रतीत होता है । उसका दूसरा संस्करण शोलापुर से प्रकाशित हुआ है । उसमें भी प्रस्तावना तदवस्थ ही है । अतः इस लेख द्वारा कुछ प्रयत्न किया जाता है । षट्खण्डागम नाम तथा उसके रचयिता : आचार्य वीरसेन ने अपनी जयधवला टीका के प्रारम्भ में जो षट्खण्डागम की उत्पत्ति कथा दी है उसमें उसका नाम 'खंड सिद्धान्त' दिया है । यद्यपि उससे पूर्व मंगल आदि का वर्णन करते हुए जीवद्वारा नाम दिया है, जो कि षट्खण्डागम के छः खण्डों में से प्रथम खण्ड का नाम है । उसी के कर्ता का विचार करते हुए लिखा है कि 'धरसेन के आदेश से महाकर्मप्रकृतिप्राभृत का अध्ययन पूर्ण होने के दिन ही भूतवलि और पुष्पदन्त अंकलेश्वर आ गये और वहीं चातुर्मास किया । चातुर्मास पूर्ण होने पर आचार्य पुष्पदन्त तो जिनपालित को देखने के लिये वनवास देश को चले गये और भूतबलि द्रमिल देश को चले गये । आचार्य पुष्पदन्त ने जिनपालित को दीक्षा देकर विंशतिसूत्रों की रचना की और जिनालित को पढ़ाकर भूतबलि के पास भेज दिया । भूतबलि ने जिन पालित के पास से विशतिसूत्रों को देखकर और जिनपालित से यह जानकर कि पुष्पदन्त अल्पायु हैं, महाकर्म प्रकृति प्राभृत के नष्ट होने के भय से द्रव्यप्रमाणानुगम का आदि लेकर ग्रन्थ रचना की । इससे इस खण्ड सिद्धान्त की अपेक्षा भूतबलि और पुष्पदन्ताचार्य भी कर्ता कहे जाते हैं' । हमारे मत से यहाँ 'खण्ड सिद्धान्त' नाम जीवट्ठाण के लिये आया है, क्योंकि प्रथम तो उसी के प्रसंग से कर्ता की चर्चा चली है । अतः 'एयं' पद उसी की ओर संकेत करता है । दूसरे 'जीवद्वाण' के केवल सत्प्ररूपणा सूत्रों की रचना पुष्पदन्त ने की थी । द्रव्यप्रमाणानुगम का आदि लेकर शेष रचना भूतबलि ने है अतः जीवद्वाण की अपेक्षा दोनों ही उसके कर्ता हुए । किन्तु पूर्ण षट्खण्डागम के कर्ता दोनों आचार्य नहीं हैं यह इससे ध्वनित होता है तथा कृति अनुयोगद्वार के प्रारम्भ में जो ग्रन्थकर्ता का विवेचन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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