SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___101 मूलाचार में प्रतिपादित मुनि-आहार चर्या प्रकार का होता है । सूत्रकृताङ्ग' में एषणीय आहार ग्रहण (के मार्गों) की चर्चाप्रसंग में तीन प्रकार के आहार वताये हैं : १. ओज-आहार-जो केवल शरीर पिण्ड द्वारा ग्रहण किया जाता है। २. रोम-आहार-जो रोम कप द्वारा ग्रहण किया जाता है। ३. प्रक्षेपाहार-जो जिह्वादि द्वारा ग्रहण किया जाता है। "मलाचार" में अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य इस तरह आहार के चार प्रकार बतलाये हैं।२ पानाहार अर्थात् जिसके दश प्रकार के प्राणों का अनुग्रह किया जाए, जैसे जल, दूधादि । अशनाहार-जिससे क्षुधा की शान्ति होती है। जैसे चावल, दाल, गेहूँ आदि । रुचिपूर्वक जिसका रसास्वादन लिया जाए वह खाद्याहार, जैसे लड्ड आदि पकवान तथा जिनका आस्वादन किया जाए वे स्वाद्य वस्तुएँ हैं, जैसे इलायची, लवंगादि । किन्तु मूलाचार का यह विभाजन पर्यायाथिक नय की अपेक्षा से है, द्रव्याथिक नय को अपेक्षा से तो सब में वहाँ ऐक्य माना है। अर्थात् सभी आहार अशन हैं, सभी पान, सभी खाद्य और सभी स्वाद्य हैं। विभिन्न ग्रन्थों के आधार पर आगमानुसार सभी ग्राहारों के चार भेद हैं:१. कर्माहारादि, २. खाद्यादि, ३. कांजो आदि, ४. पानकादि । इन चारों के अन्तर्गत कौन-कौन आहार पाते हैं, उन्हें निम्नलिखित विभाजन से देखा जा सकता है। आहार १. कर्माहारादि २. खाद्यादि ३. कांजी आदि ४. पानकादि कर्माहार अशन कांजी स्वच्छ नोकर्माहार पान आचाम्ल बहल कवलाहार खाद्य (भक्ष्य) बेलड़ी लेबड़ लेप्याहार लेह्य एकलटाना अलेबड़ ओजाहार स्वाद्य ससिक्थ मानसाहार असिक्थ मुनियों के आहार ग्रहण का उद्देश्य : श्रमण इस संसार में रहते हुए सांसारिकता से दूर रहकर आत्म एवं पर का कल्याण करते हैं । और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए शरीर को जीवित रखना १. सूत्रकृताङ्ग, २.३.१.२० २. मूलाचार, ७.१४७. ३. वही, ७.१४८. ४. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग १, पृष्ठ २९९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy