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________________ जैनधर्म का उद्भव एवं विकास : एक ऐतिहासिक मूल्यांकन 99 आदि जैसे वादशील श्रावक निगण्ठनाथपुत्त के शिष्य थे।' निश्चित ही इन शिष्यों में कुछ शिष्य पार्श्वनाथ-परम्परा के रहे होंगे। वे किसी के कथन में वास्तविक दोष ही देखते थे । जय-पराजय की भावना उनमें नहीं थी। इसीलिए वितण्डा को जैन दर्शन में वितण्डाभास कहा गया है । पालि साहित्य के समान जैनागम में भी वादविवाद के अनेक उल्लेख मिलते हैं। गोशालक के शिष्य सहालपुत्त और महावीर के बीच, आर्य अट्टका विविध मतानुयायियों के साथ तथा महावीर का अन्य तीर्थकों के साथ हुए शास्त्रार्थ उल्लेखनीय हैं। प्राचीनकाल में धर्म प्रचार का माध्यम शास्त्रार्थ हुआ करता था। ठाणांग में शायद इसीलिए वादविद्याविशारद को दक्ष पुरुषों की गणना में रखा गया है। यहीं कथा के भेदोपभेद, विवाद के भेद, वाददोष, विशेषदोष, प्रश्नप्रकार, छल-जाति आदि के विषय में भी सामग्री मिलती है। ___दार्शनिक युग में वादविवाद के अंग-प्रत्यंगों पर और अधिक सूक्ष्मतापूर्वक विचार किया गया। तत्त्वजिज्ञासुओं की कथा को वाद और विजिगीषियों की कथा को जल्प और वितण्डा कहा है। वाद में न्यून, अधिक, अपसिद्धान्त और पाँच हेत्वाभास इन आठ निग्रहस्थानों का प्रयोग विधेय माना गया है । छल, जाति आदि के प्रयोग को जैनाचार्यों ने सदैव निषिद्ध किया है। इसकी पृष्ठभूमि में अहिंसा की भावना ही कार्यकारी रही है। इस प्रकार संक्षेप में हमने जैनदर्शन के कुछेक विषयों के उद्भव एवं विकास पर ऐतिहासिक दष्टि से पर्यालोचन किया। इस विषय पर अभी समग्र रूप से विचार करने की आवश्यकता है। जैनेतर दर्शनों के प्रकाश में भी इस पर चिन्तन किया जाना अपेक्षित है। १. देखिये मेरा प्रबन्ध, जैनिज्म इन बुद्धिस्ट लिटरेचर, अध्याय ४. २. न्यायावतार २-३८४. ३. उपासकदशांग, अध्ययन ७. ४. सूत्रकृतांग, २.६ ५. भगवतीसूत्र १.९.२.५ ६. ठाणांग, सूत्र ६७९. ७. न्यायावतार-वार्तिकवृत्ति, प्रस्तावना, पृ० ८६-१०२. ८. विशेष देखिये, सिद्धिविनिश्चय, जल्पसिद्धि परि० ५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522602
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorG C Chaudhary
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1974
Total Pages342
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size7 MB
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