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________________ RĀSTRIYA EKATA 245 भेद ही संधविनाश का मूल कारण है। संघनायक ही संध के योगक्षेम का आधारभूत स्तम्भ हैं । नारद वासुदेव को कहते हैं (शांतिपर्व, ८१.२५ ): - भेदाद्विनाशः संघानां संघमुख्योऽसि केशव । यथा त्वां प्राप्य नौत्सीदेवयं संघस्तथा कुरु ॥ हे केशव ! आप इस यादव संघ के नायक हैं। भेद के कारण ही संघों का विनाश होता है। अतः आप ऐसा करें जिससे आपको पाकर इस संघ का-इस यादव गणतंत्र राज्य का- मूलोच्छेदन न हो जाय । संघनायक के आवश्यक गुणों का वर्णन नारद इस प्रकार करते हैं (वही, कोक २६) नान्यत्र बुद्धिक्षांतिभ्यां नान्यत्रेन्द्रियनिग्रहात् । नान्यत्र धन-संत्यागाद्गण: प्राज्ञेऽवतिष्ठते । बुद्धि , क्षमा और इन्द्रियनिग्रह के बिना तथा धन के बिना तथा धन के त्याग किये बिना कोई गण अथवा संध किसी बुद्धिमान् पुरुष की आज्ञा के अधीन नहीं रहता है । ___ वासुदेव जैसे महापुरुष ही विवदमान संघ की एकता को अक्षुण्ण रख सकते हैं । इस प्रसंग में नारद कहते हैं ( वही, श्लोक २३ ) : नामहापुरुषः कश्चिन्नानात्मा नासहायवान् । महती धुरमाधत्ते तामुद्यभ्योरसा वह ।। जो महापुरुष नहीं है, जिसने अपने आत्मा को वश में नहीं किया है तथा जो सहायकों से सम्पन्न नहीं है, वह कोई भारी भार नहीं उठा सकता । अतः आप ही इस गुरुतर भार को हृदय से उठाकर वहन करे । महाभारत के ये उल्लेख राष्ट्रीय एकता तथा इस एकता के आधारभूत राष्ट्रनायक के गुणों पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं। ४. राष्ट्रीय एकता के अभाव में समय-समय पर देशों में महान् संकट आये हैं। मौर्यकाल में राष्ट्रीय एकता की स्थापना हुई जो अशोक के काल तक विकास की पराकाष्ठा तक पहुंची। पर इस एकता के नष्ट होते ही फिर संकट आया था। गुप्तकाल में फिर से एकता प्राई और देश समृद्धि के शिखर पर पहुंचा, पर एकता कभी स्थिर नहीं रही। आधुनिक युग में गांधीजी ने राष्ट्रीय एकता के लिए प्राण दिये, अमरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकान ने ईसवी सन् १८५८ में कहा था--- "A house divided against itself cannot stand'. I believe this Government cannot endure permanently half slave and balf free”, उन्होंने एकता के लिए प्रारणाहुति दी जिसकी पुनरावृत्ति राष्ट्रपति केनेडी ने की। इसी राष्ट्रीय एकता को संकटग्रस्त पाकर हाल ही में पहली अप्रील को राष्ट्रपति जानसन ने घोषणा की. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522601
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1971
Total Pages414
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size9 MB
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