SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ DHARMA KE MŪLA: ANUBHÜTI EVAM TARKA 207 है। और, वैशाली का यह रास्ता था भी नहीं। यहां का तो रास्ता था कि हमारा जो प्रतिपाद्य विषय है, उसके सम्बन्ध में हम वाद-विवाद करेंगे-विचार के स्तर पर लड़ेंगे, सब मिलकर आलोचना-प्रत्यालोचना करेंगे, तब एक समन्वय निकलेगा-एक तत्त्व-बोध पैदा होगा। वही समन्वय सच्चा समन्वय होगा और वही वैशाली की परम्परा के लायक समन्वय होगा। केवल यह कह देना कि हम सब एक हैं, समन्वय नहीं है और ऐसा समन्वय कभी वैशाली में हुआ नहीं। वैशाली तो गणतंत्र का जन्म स्थान है-खाली राजनीतिक गणतंत्र का ही नहीं। यहाँ सबको स्वतंत्र चिन्तन करने का अधिकार था और सभी इस अधिकार का प्रयोग करते थे- इसे व्यवहार में लाते थे। यह वैशाली चिन्तनशील लोगों की जगह थी। इसमें शक महीं कि वैशाली शौकीन लोगों की भी जगह थी। गरीबी दूर हो जाने पर लोग शौकीन हो ही जाते हैं। जब भगवान् बुद्ध यहाँ आये और लिच्छवी लोग उनसे मिलने गये, तब भगवान् ने देखा कि यहां के लोग कितने शौकीन हैं : जिसका घोड़ा लाल रंग का है, उसका कपड़ा भी लाल है और जिसका कपड़ा नीला है, उसका घोड़ा भी नीला है। तब भगवान बुद्ध ने प्रसन्न होकर भिक्षुओं से कहा था कि तुमलोगों ने देवता तो नहीं देखा है। देख लो, इन लिच्छवियों को। देवता की शक्लसूरत ऐसी ही होती। ___ मैं आपलोगों से मिलकर बड़ा प्रसन्न हुआ। बड़ी बांछा थी कि वैशाली को देख आऊँ, जिसके बारे में मेंने इतना पढ़ा है। वह वांछा आज पूरी हुई। मेरे विचार से वैशाली में ऐसा अनुष्ठान बराबर करना चाहिए, जिससे स्वाधीन चिन्ताधारा विकसित हो । चिन्ता और अनुभूति अलग-अलग नहीं हैं। आदमी की अनुभूति उसके सामाजिक परिपार्श्व में उसको चिन्ताधारा से बनती है। अच्छे आदमी की अनुभूति अच्छी होती है, दुष्ट की दुष्ट । जिसकी चिन्ताधारा दुष्ट है, उसकी अनुभूति का शुद्ध होना नामुमकिन है और जिसकी चिन्ताधारा शुद्ध है, उसको अनुभूति शुद्ध होगी ही। अगर अाप दार्शनिक तत्त्वनिरूपण में जाइए, तो पाप पाएंगे कि अनुभूति और युक्ति में कोई मौलिक पार्थक्य नहीं है । दोनों में प्रणाली-भेद है, लेकिन दोनों का जन्म तो मनुष्य से ही होता है। चिन्ता और अनुभूति दोनों ही मनुष्य के अन्दर हैं, बाहर नहीं। यानी जिसकी चिन्ता सत् होगी, उसकी अनुभूति भी सत् होगी। इसलिए आप चिन्तामुक्ति का प्रबन्ध कीजिए, स्वाधीन और सचिन्ता का प्रबन्ध कीजिए । देखिए आपकी अनुभूति शुद्ध होगी। नमस्कार । १-महावग्ग, ६. १८. ३० ( पृष्ठ २४७ )। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522601
Book TitleVaishali Institute Research Bulletin 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherResearch Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur
Publication Year1971
Total Pages414
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationMagazine, India_Vaishali Institute Research Bulletin, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy