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________________ શ્રી તપકુલકમ पीडइ भवगयजीवे-तवसा जइ होज से णिराहारो ॥ अहियखुहापरिकिण्णो-णस्सइ तत्तो महालाहो ॥४४॥ तवसंविहाण समए-पव्वतवो समहिओत्ति पुचतवं ॥ गुरु चिच्चा करणिजो-से पच्छा गुरुतवं कुजा ॥४५॥ अह चलए इकतवो-आगच्छिजा परो तवो मझे। काअव्यो गुरुयतवो-कुजा पच्छा तवं लहुयं ॥४६॥ आरद्धो.एगसणा-तवो जहा परतवो अभत्तहो । संपत्तो मज्झम्मि-उववासो चेव कायो।।४७॥ एगासणाइरूवो-पच्छा लहुओ तवो पसाहिजा ।। विस्सरणाइणिमित्ता-तव भंगो होज कइयावि ॥४८॥ तवमज्झे वा पच्छा-कुज समालोयणा तवे कमिए । चरिसियतबाइयतवे-तिहिकमो णो गणीएज्जा ॥४९॥ सूरोदइया य तिही-तिहिप्पहाणे तवम्मि गिहिज्जा। पुच्चा तिहिक्खयम्मि-तिहिवुड्डीए तिही दुइया ॥५०॥ इतवारंभदिणे-पूया दाणाइ मंगलं कुज्जा ॥ णिविग्धा संपुत्ती-तवस्स होज्जा तओ नियमा॥५१॥ गुरुसुयजोगुव्वहणे-उवहाणे वीसठापपमुहतवे । इह गुरुणंदीठवणा-तबहरितेसु लहुणंदी ॥५२॥ परिचत्तो दिक्खाए-बिंबपइट्ठाइए य जो कालो। से चजो इगमासा-हिए तवे परिसिया इम्मि ॥५३॥ सिमुहुत्ते जाए-इतवारंभणे तयणु समए । असुहे आगच्छिज्जा-दिवसाई णो खई तेहिं ॥५४॥ पढमविहारालोयण-तवणंदीए पहाणणक्खत्ता ।। मिउधुव खिप्पचरक्खा-हियजोधक्खेम करणयरा ॥५५॥ सणिमंगला प गेज्झा-सुहा वहा सोम भाणुवाराई ॥ कज्जविसेसे गिज्झइ-सुहजोगा वज्जिया दोणि ॥५६॥ अहिओ चित्तो मासो-तया पढमचित्त कण्हपक्खस्मि ॥ तहविइय चित्तमासे-सुके कल्लाणमाइतवा ॥५७॥ एवं चेच बिहाणं-भद्दवए बुड्डिए य छट्टेणं ॥ . उचरिओ छटुतवो-पहुवीरतवाणुओ कजो ॥५०॥
SR No.522526
Book TitleJain Dharm Vikas Book 03 Ank 02 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichand Premchand Shah
PublisherBhogilal Sankalchand Sheth
Publication Year1943
Total Pages40
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Vikas, & India
File Size8 MB
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