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शासन सेवक महाप्रभावक आचार्योंने इस बिमारी को नष्ट करने का भरचक प्रयत्न किया। . शासन रक्षा एवं शासमोन्नतिके ध्येय से पृथक २ समुदाय की व्यवस्था की ।
पर यह हुआ कि भिन्न २ गच्छ होते गये मिन्न २ समाचारियें होती गई। "वाड खेत को खाय" जैसी स्थिति हो गई। फिर भी शासन रक्षा एवं उन्नति में सब का एक ध्येय रहा अतः यह एक कम सौभाग्य की बात नहीं है। कुछ समयांतर शासन वृद्धअवस्था आने लगा।
- आप जानते हैं कि वृद्ध अवस्था में स्थिति कैसी हो जाती है । ठीक यह स्थिति हमारे शासन के लिये भी होने लगी। मिन्न २ गच्छ एवं समाचारी होने से स्वच्छंदता बढ़ती गई। फल स्वरुप शैथल्यता ने अपना राज्य जमाया । सद्भाग्य से कलिकाल सर्वज्ञ भगवान् हेमचन्द्राचार्य, उपाध्याय यशोविजयजी जैसे बड़े बड़े प्रभावशाली शासन सेवकों का आवीरभाव हुआ और सर्वज्ञ शासन की उन्नति के प्रयत्न किये। क्रियाद्धारक पंन्यास सत्यविजय गणिने क्रिया उद्धार करके शासन को एक प्रकार से वृद्ध अवस्था में गये हुए को फिर से युवक बना दिया। पर आखिर तो वृद्ध अवस्था ही थीन ?
वि. सं. १५०८ में शासन भंजक महोदय ! श्रीमान् लोकाशाह और साधुओं का द्वेषी कडुआशाह का आविर्भाव हुआ। कीसी अपराध विशेष से गुरु महाराजके द्वारा तिरष्कृत हो जाने पर एवं यवनों की सहायता से आत्मकल्याण का मुख्य साधन मूर्तिपूजा, सामायक, पोषध, प्रत्याख्यान आदि क्रियाओं का निषेध करके अपने नाम से पृथक पन्थ चला दिया। सदभाग्य से प्रातःस्मरणिय आचार्य प्रवर श्री विजयहीरसुरिश्वरजी महाराज तथा आनन्दविमलसुरि आदि जैसे महापुरुषोंने: अपनी विश्वविजयी प्रतिभा द्वारा शासन की सुव्यवस्था की.- भूले हुए प्राणियों को सत्यमार्ग पे लाये। खूद लोकाशाह के अनुयायी कहलानेवाला. का. मो. शा. भी अपनी ऐतिहासिक नोंध में लिखते है कि “पू० मेघजीस्वामि आदि ५०० साधु लौकामच्छ को छोड़ कर विजयहीस्सुरिश्वरजी के शिष्य हो गये"।
और बचे हुए लोगोने लोकाशाहने जिन बातों का निषेध किया था. उन्ही को स्वीकार करके लोंकामच्छ नामक एक पृथक सम्प्रदाय बना लिया।
(अपूर्ण.)