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________________ 330 જૈનધર્મ વિકાસ. ॥श्री आदिनाथ चरित्र पद्य ॥ (जैनाचार्य श्री जयसिंहसूरीजी तरफथी मळेलु.) (गतis ५४ ३०५ था अनुसंधान. ) वर्ण जंघ तब अतिसुख माना, पुत्र जन्म सुनकर निज काना ॥ हर्षित नाम करण पुनि कीना, वज्रजंघ नाम धर दीना। इधर ललितकी सुन्दर नारी, तप अरु धर्म करत सुखकारी॥ बहुत दिवस बीते इहि भांती, इहिविधि पुनि वह पाइ क्षांती। चव्यी होय जन्मी वही द्वीपा, ललितदेव जन्मा तेहि द्वीपा॥ नगरी पुन्डरिकिणी सुहावा, वज्रसेन राजा घर आवा। कन्या जन्म सुन नृप हर्षावा, राणी गुणवती कन्या जावा ॥ श्रीमती नाम तुरत धर दीना, हर्षित नृप अति मंगल कीना। चंद्रकला सम बढ़ती बाला, पुनि योवन पाया मतवाळा ॥ एक समयके मायने, महल तो भद्रा माय। चड़कर जोवे श्रीमती, नभ विमान उडवाय॥ देह माय पुनि उपजा ज्ञाना, हाल सबहीं पूर्व कर जाना । यही हाल पूर्व भव देखा, युगंधर मुनिवर ज्ञानभिषेखा ॥ बेठ विमान देव तहं आये, वहि विमान पुनि यहीं दिखाये । ज्ञान पाय जीनां सब माया, केवली हुए यहां मुनिराया ॥ अहो पूर्वकर मम पतिदेवा, कबहुं मिले मुझ पतिपद सेवा। कवन देस जन्मे मम नाथा, अब में किन विध होउं सनाथा ॥ जब तक नहीं पति दर्शन पाउं, तबतक मूक बोल विसराउं। इमि मन बन मूक भइबाला, कर उपचार हो दुखी भूआला ॥ व्याध मिटी नहीं हारे राजा, ठीक दवा बिन रोगन भाजा। काम पड़े लिखकर समझावे, यहि विधि कन्या अति दुख पावे ॥ एक समय वह बालिका, आइ क्रीडाद्यान । अवसर जान एकांतका, बोली धाय सुजान ॥ सुनहु राजकन्या मम बाता, दुखकी मुझे कहो सब साता। तुम दुखमें मुझको दुख भारी, सत्य कहुं अय राजकुमारी। बिन उपाय दुख टरे न टारा, कहत बात होवे उपचारा ॥
SR No.522523
Book TitleJain Dharm Vikas Book 02 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichand Premchand Shah
PublisherBhogilal Sankalchand Sheth
Publication Year1942
Total Pages40
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Vikas, & India
File Size9 MB
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