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________________ 334 - शीत-८४. रोगी हाल वद्य सन भाके, तिमि सब हाल कहा तिन आगे। पंडिता घाय लिखा सब हाळा, लिख कर गुप्त किया तेहि काळा ॥ वज्रसेन नृप जन्म दिन, आय गया तेहि काल। करन महोत्सव नृपनको, बुलवाये महिपाल ॥ आये राजकुमार, सब विधि साज सजायकर । पंडिता किया विचार, सबको यह दिखलावणा ॥ श्रीमती कर पूर्व भव चित्रा, सबहि दिखाया दासी पंडिता। देख सबहिं वह चित्र सराहा, दुदंतिकुंवर तब कपट बनावा ॥ देख चित्र मूर्छित हो जावा, पुनि मुख चिंतायुत बनवावा। पंडिताने यह हाल पिछाना, तब तिन पूछा निज मनमाना॥ कवन बात तुम मूछित भयऊ, तब तिन चित्र पूर्वभव काऊ। तब पंडिता पूछत सब बाता, ते सुन कपटी अति घबराता । मुनिवर नाम न जाना नीचा, तासे सबहीं खुली कपटीचा। तब पंडिता एक युक्ति बनाई, ताहि नारी लूली बतलाई॥ तुमरे विरह बहुत दुख पावा, तबहिं मित्र तिन बहु समझावा । लजा पाय तुरत चल दीना, मलत हाथ अज्ञान प्रवीना॥ लोहागल नृपके कुंवर, आय गया तेहि काल । चित्र देख अति दुःखमे, हुआ हाल बेहाल ॥ . पंडिता पुनि उपचार करावा, तासे कुंवर सुधबुध में आवा । पुनि तिनसों इमि पूछन लागी, किमि मूर्छित तुम हुए सोभागी॥ (अपूर्ण) ॥शील-कुलकम् ॥ रचयिताः-जैनाचार्य श्री विजयपद्मसूरिजी. (dis Y४ ३०१ था अनुसथान.) जीवो तास थिरो णो-चएइ णो निरसभोयणं भिक्खु ॥ जो तं कामं जोगा-णिम्मलहेऊण विजएजा ॥१०४॥ दुहिओ जाओ मुंजो-नारीए तजिओ तहिं हेऊ ॥ कामो कुडिला नारी-खणरचा खणविरचाओ॥१०५॥
SR No.522523
Book TitleJain Dharm Vikas Book 02 Ank 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichand Premchand Shah
PublisherBhogilal Sankalchand Sheth
Publication Year1942
Total Pages40
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Vikas, & India
File Size9 MB
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