________________
શાસ્ત્રસમ્મત માનવધર્મ ઔર મૂર્તિપૂજા.
३१७
शास्त्रसम्मत मानवधर्म और मूर्तिपूजा. लेखक:-पू. मु. श्रीप्रमोदविजयजी महाराज. (पन्नालालजी)
(गतां१४ २१७ थी मनुस धान.) कदाचित् मुसलमान लोग मसजिद में मूर्ति की स्थापना करना पसंद नहीं करते हों तथापि यह मानने में कदापि संकोच नही करना चाहिये कि उनकी सारी मसजिदें और कबरें ही मूर्तिमय है । सारों मसजिद की एक एक इंट को वे पवित्र मूर्तिवत समझते है और उसके निमित्त जीवन सर्वस्व अर्पण करने के लिये भी सतत कटिवद्ध रहते है । इसके अनेक उदाहरण प्रत्यक्ष समाचार पत्रों में दृष्टि गोचर होते ही है । मुसलमान तो क्या किन्तु क्रिश्चियन भि मूर्तीपूजा से वंचित नहीं रह सके है । ये लोग अपने मुंहसे बोलकर भलेही उसका निषेध करदें किंतु उनकी अन्तरात्मा उसको कदापि स्वीकार न करेगी क्रिश्चियन लोगो में भी दो मत है एक मूर्ती को महत्व देने वाला और द्वितीय मूर्तिपूजाका निषेध करने वाला । भूर्ती को महत्व देने वालों में रोमन कैथोलिक हैं और उसका निषेध करने वालों में प्रोटेस्टेण्ट हैं। प्रोटेस्टेण्ट क्रिश्चियन ईशक्राइस्टको शली पर लटकती हुई आकृति सूचक क्रॉस चिन्हको महत्व और पूज्य दृष्टिसे देखते हैं उसके सामने प्रार्थना करनेमें गौरव समझते हैं। उसका किंचित भी अपमान नहीं सहन कर सकते हैं। क्रिश्चियनोंका कॉस चिह्न ही मूर्ति है। जव वे मूर्ति को स्पष्ट स्वीकार करते हैं तो उसका निषेध कैसे कर सकते हैं इतना ही नहीं वे अपने प्रसिद्ध तीर्थस्थान जेरुसलम में यात्रार्थ जाके और भक्तिपूर्वक तत्र स्थापित क्रॉस चिह्नका चुम्बन करते है ये सब प्रकार प्रकारांतर से मूर्तिपूजा के साधक ही हैं। हम देखते हैं कि अनेक गिर्जाघरों में ईसामसीहका चित्र लगा रहता हैं वे लोग उसको उच्चासन पर स्थापित करते हैं उसके सामने सुगंधित द्रव्य से धूप देते हैं मोमवती जलाते हैं पुष्पहार चढाते हैं और प्रार्थना भी करते हैं क्या यह भि मूर्तिपूजा नही है ? मानव हृदय भी आज तक मूर्तिपूजक रहा है और अन्त तक रहेगा। कोई भी सभ्य समाज इसका खण्डन नहीं कर सकता है। जिस इसामसीहने मूर्तिपूजा के विरुद्ध सिर उठायाथा और उसके लिये पूर्ण प्रयत्नसे प्रचार भी किया था किंतु आज उसीके अनुयायी उसी की मूर्ति को और तदा कृति संकेतित क्रॉस की पूजा करते है। उसे आदर देते हैं। इतना ही नहीं उसके शिष्य समुदाय में से सोक्रेटीज (शुक्र रात) ने तो अनेक प्रसंगो से और प्रमाणों द्वारा मूर्तिपूजा के महत्व को वहुत बढाया है और उसकी सिद्धि तथा मंडन भी किया है। वर्तमान में भी अपने को ईशूक्राइष्ट की संतति या वंशज कहनेवाले अनेक क्रिश्चियन लोक पर्याय भेद से मूर्ति के अवलंबन से ही काम ले रहे हैं और मूर्ति के अवलंबन द्वारा ही उसका प्रचार कर रहे हैं। मुसलमानों और क्रिश्चियनों के अतिरिक्त यहूदी और पारसी लोक भी मूर्तिपूजक