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________________ ૩૬૮ જૈનધર્મ વિકાસ आचार्यदेवना उपदेशाम्रतथी अनेक संस्थाओनी _ थयेल उदघाटन ले: मा. चंदनमल सागरमल जैन, सादडी. यहां पर प्राचीन तीर्थोद्वारक बालब्रह्मचारी चारित्र-चूड़ामणि श्रीमज्जैनाचार्य विजय नीतिसूरीश्वरजी म. एवं पन्यासजी म. श्री मनोहरविजयजी म. तथा पन्यासजी म. श्री सम्पतविजयजी म. गणिवर्य आदि ठा. १७ परम सुखशान्तिपूर्वक विराजमान हैं । ____ इस वर्ष आपका चातुर्मास यहां होने से शासनकी अच्छी उन्नति हो रही है । धर्मध्यान भी अच्छा हो रहा है । व्याख्यान पन्यासजी म. श्री सम्पतविजयजी फरमाते हैं । जनता अच्छी संख्या में व्याख्यान-वाणी का लाभ ले रही है, आपके चतुर्मास से सारे शहर में आनन्द मङ्गल हो रहा है । सब प्रकार से शान्ति हो रही है । ___विशेष यहां पर बहुत वर्षों से कन्याशाळा तथा धार्मिक पाठशाला में शिक्षण बंद होगया था जब कि इतने बड़े क्षेत्र में इनकी अनिवार्य आवश्यकता थी । यह बात आचार्यदेवको ज्ञात होने से आचार्यदेवने बहुत प्रयत्न किया और विद्या का महत्व बताते हुए समय २ पर व्याख्यानमें भी उपदेश दिया। फलस्वरूप यहां के श्रीसंधने आचार्यदेवके उपदेशानुसार दोनों पाठशालाएं प्रारम्भ करदी हैं । अध्यायिकाएं तथा अध्याधयकों का भी अच्छा प्रबन्ध होगया है और दोनों संस्था सुचारु रूपसे चल रही है यह टपकार आचार्यदेवका ही है अतः हम आचार्यदेवके महान् ऋणी हैं। इस श्रेयके अधिकारी भी आचार्यश्री ही हैं । शासनदेवसे भी यही प्रार्थना है कि ये दोनों संस्थाएं चिरस्थायी बनें। सादड़ी श्री संधसे भी यही निवेदन है कि आपने अपनी उदारतापूर्वक आचार्यदेवकी आज्ञाका पालन किया है अतएव इस शुभ कार्य के लिये आपको धन्यवाद न देकर बधाइ दें तो ऊपासङ्गिक नहीं होगा । जिस उत्साह से आपने इन संस्थाओं का सञ्चालन किया है उसी उत्साह-पूर्वक कार्य सुचारु रूपसे चलाने की उदारता करें । विशेष हर्षोत्पादक समाचार यह है कि यहां पर सेवा समाज की कोई व्यवस्था नहीं थी जब कि ऐसी संस्थाओं की प्रत्येक ग्राममें अनिवार्य आवश्यकता रहती है तो गोडवाड़ प्रान्तमें तो सादड़ी केन्द्रस्थान गिना जाता है इस लिये यहां इसकी नितान्त आवश्यकता थी । बहुतसे नवयुवकों की इस ओर अभिरुचि भी थी। इस वर्ष भाग्योदय से आचार्य देवका अमोघ साधन मिलजाने से बहुत दिनों की इच्छा सफल होने का सौभाग्य भी प्राप्त
SR No.522512
Book TitleJain Dharm Vikas Book 01 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichand Premchand Shah
PublisherBhogilal Sankalchand Sheth
Publication Year1941
Total Pages36
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Vikas, & India
File Size8 MB
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