SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ જીવહિંસાના વિરોધમાં મુનિની આદર્શ સેવા ૩૫૯ सेवा बजा रहे हैं। वास्तव में वर्तमान में इसकी इतनी अधिक आवश्यकता है कि जिसके लिये लिखाना ही व्यर्थ है । इस आवश्यकता पूर्ति के लिये अब से कुछ साधु वर्ग भी प्रयत्न शील हो रहा है जिसके परिणाम स्वरूप इत उत सुंदर. जागृति की नूतन लहर लहरा रही है। इस का एक ताजा उदाहरण हाल ही में हमें धन्नापुर ग्राम में मिलता है। धन्नापुर यह जोधपुर स्टेट में शिवगंज (मारवाड) से दो कोस की दूरी पर एक गांव है। वहां पर एक देवी का मंदिर है जहां बहुत समय से जीव हिंसा का प्रचार था और मूढ लोगों के हृदय; हिंसा के वातावरण से पूर्ण रंग गये थे यहां तक कि हिंसा निरोध का उपदेश देनेवाला भी उनसे सही सलामत नही बच सकता था वे इस प्रकार के आंदोलन करने वाले को धर्म द्रोही, एवं माता द्रोही समझते थे । इस प्रकार जीव हिंसा का वातावरण वहां बहुत गरम हो रहा था किंतु अपने गुरुवर्य सूरिसम्राट, तीर्थोद्धारक श्री श्री १००८ श्री श्री विजयनीतिसूरीश्वरजी म. के आदेश से सुव्याख्याता, भद्रकपरिणामी मुनि श्री भद्रानंदविजयजी म. सा.उक्त गांव में पर्दूषणों में व्याख्यानोपदेश देने के लिये पधारे । आपने अपने अनवरत उपदेश प्रभाव से तत्रस्थ श्रावकों व ठाकुर साहेब को वश में कर लिया । सब पर व्याख्यान का उत्तम असर पडा। अब क्या था ? जहां का राजा ही वश में है वहां की प्रजा के वश होने में क्या देरी लगती है ? कुछ नहीं । ठाकुर साहेब को खूब समझाकर उनको अपने इस कार्य में सहमत कर बलिदान के दिवस मुनिश्री अपनी श्रावक संपदा सहित उसी माता के मंदिर के पास आये जहां कि अनेक निरपराध भोले किंतु मूक पशुओं का प्राण व्यपरोपण किया जाता था। मुनि श्री इस कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिये अनशन व्रत अंगीकार करके ही निकले थे। जब भाद्रपद की चतुर्दशी के दिन सब अज्ञ लोग बलिदान लेकर आये तब मुनि श्री ने अपनी ओजस्वीव्याख्यान कला से सब की भावना में सहसा परिवर्तन कर दिया । वास्तव में परिश्रम कभी व्यर्थ नहीं जाता उसका कभी न कभी सुपरिणाम निकलता ही है। एक तो मुनि श्री का चारित्र बल, द्वितीय तथो वल, एवं तृतीय व्याख्यानोपदेश बल इस प्रकार त्रिबल त्रिपुटी के सहयोग से आपने पूर्ण सबलता प्राप्त की और उक्त स्थान पर उस दिन से हिंसा न होने का पूर्ण वचन तत्रस्थ समाज से ले लिया । अब भी वहां हिंसा नहीं होती है ऐसा विश्वस्त सूत्र से ज्ञात हुआ है । धन्य है; ऐसे मुनिवरों को जो कि ऐसे पारमार्थिक कार्य की ओर सतत प्रवृत्ति कर दुखियों के दुःख को दूर करते हैं। यदि मुनि श्री के इस स्तुत्य प्रयत्न का और आदर्श सेवा धर्म का अन्य मुनिगण भी अनुकरण करेंगे तो समाज में बहुत जागृति हो सकेगी और निरपराध मूक पशु अभयान प्राप्त कर सब को शुभाशीष प्रदान करेंगे।
SR No.522512
Book TitleJain Dharm Vikas Book 01 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichand Premchand Shah
PublisherBhogilal Sankalchand Sheth
Publication Year1941
Total Pages36
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Vikas, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy