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________________ न धर्म वि . क्रूरकर्मी और पापात्माने भी इसी के अवलंबन से आत्म कल्याण कर संसार को एक अद्भुत पाठ पढ़ाया है। शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से तो इसका लाभ प्रत्यक्ष ही है किंतु उसी में कर्म निर्जरा का विशाल रहस्य भी छिपा हुआ है। तात्पर्य यह है कि मुमुक्षुओं के कर्म दल दलन का तप एक अमोद्य शस्त्र है। उपधान तप भी ऐसा ही शास्त्र सम्मत उत्कृष्ट तप विशेष है जिसका सुलाभ पुण्यशाली व्यक्ति ही उठा सकते हैं । यों तो इस तप की अनेक स्थलों पर आराधना हो रही है और हुइ है किंतु वर्तमान में इसवर्ष श्री मजैनाचार्य, प्रातःस्मरणीय, चारित्र बल संपन्न तपस्तेजपुंजधारी, जीर्णोद्धारक, शांत स्वभावी, सरल हृदयी, आनंदमस्त अध्यात्म योगी, बालब्रह्मचारी एवं एवं परमादरणीय परमपूज्य श्री श्री १००८ श्री विजयनीति सूरीश्वर जी महाराज सा. की अध्यक्षता में बांकली ग्राम में जो उपधान तप प्रारंभ है उसकी छटा अनेक दृष्टियों से अलौकिक ही है। इस तपाराधन में करीब ६००,६२५ श्रावक श्राविकाएं विरक्त भावना पूर्वक दत्तचित्त होकर जिनप्रणीत धर्म क्रिया का सोत्साह लाभ ले रहे है। इस तपाराधन की व्यवस्था के सारे भार का बीड़ा बांकली निवासी, धर्मप्रेमी, उदार हृदयी, दानवीर, सुखसम्पन्न श्रीमान् शाह हजारीमल जी जवानमल जी कोठारी ने ही उठाया है। यह अब आचार्य देव के उपदेशामृतपान का ही सुप्रभाव है। जब से मारवाड प्रांत में सपरिवार आचार्य देव का पुनीत पदार्पण हुआ है तभी से यहां के ग्रामों में जन मन रंजनकारी धर्मोद्योत की एक नवीन ही ज्योति जग मगा रही है। जिन २ क्षेत्रों में आपकी वैराग्य वाणी मयी श्रुतोपदेश धारा की वर्षा हुई है उन उन क्षेत्रों में पूजा, प्रभावना, दीक्षा आदि विविध प्रभावोत्पादक कार्य हुए हैं। गुजरात प्रांत तो आपके प्रभाव से प्रभान्वित है ही किंतु मारवाड में भी लोगों की सुप्त धर्म भावनाओं को जागृत कर उन्होना जीवन प्रदान कर स्फूर्ति देने में पयांप्त सफलता प्राप्त की है आचार्य देव के पवित्र शुभागमन से मारवाड स्थल में जितनी धर्म जागृति और धर्मोद्योत हो रहा है यह उनके चारित्र बल वृद्धि के शुभ संदेश को ही सूचित करता है। बांकली ग्राम भी जब इस धर्म प्रभाव से वंचित न रह सका तो बड़े २ शहरों में आपकी विजय दुंदुभि बजे और यश पताका लहसवे तो इसमें आश्चर्य ही क्या है ? आपके प्रभावातिशय का परिचय गिरनारतीर्थ; चित्तोड़गढ, आदि तीर्थस्थान स्वयं ही दे रहे है। ___ आचार्य देव के उपदेश प्रभाव से आकर्षित होकर अपने द्रव्य का काति
SR No.522505
Book TitleJain Dharm Vikas Book 01 Ank 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichand Premchand Shah
PublisherBhogilal Sankalchand Sheth
Publication Year1941
Total Pages28
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationMagazine, India_Jain Dharm Vikas, & India
File Size8 MB
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