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એક પંથ દો કાજ
एक पंथ दो काज । आम के आम और गुटली के भी दाम । आचार्य श्री विजयनीतिमरीश्वरजी का उपदेश प्रभाव और तपाराधन
शेठ हजारीमलजी जवानमलजी कोठारी को उदारता जिसको न जिनगौरव तथा निज धर्म का अभिमान हैं।
वह नर नहीं नर पशु निरा है और मृतक समान हैं ।
बंधुओ ! धर्म प्रभावना, सद्गुरु दर्शन लाभ, और उपधान तप इन तीनों का एक ही स्थान पर एकी करण होनाओ सोनेमें सुगंध के संयोग जैसा ही है। पूर्व जन्म संचित अनन्त पुण्य राशि से ही ऐसा स्वर्ण संयोग प्राप्त होता है । प्रथम तो सद्गुरु दर्शनलाभ ही अलभ्य है द्वितीय निर्विघ्न धर्म प्रभावना का सु अवसर भी सहसा प्राप्त नहीं हो सकता तृतीय तपस्वियों की सेवा का लाभ मिलना असंभव नहीं तथापि कष्ट साध्य अवश्य है। जहां इन तीनो का सुंदर सामंजरय है वहां आनंद ही आनंद है। जिस ग्राम और जिस शहर को ऐसा स्वर्णावसर प्राप्त हुआ है उसका अहो भाग्य ही समझना चाहिये । इतना ही नहीं किंतु पूर्व जन्म कृत दीर्घ कालीन तप प्रभाव का ही कारण माना जाय तो कोइ अत्युक्ति न होगी । बांकली (मारवाड़) का सद् भाग्य है कि आज उसे अपनी पूर्व तपश्चया का फल प्राप्त हुआ है और जिसकी रमणीयता के प्रमाण में यहां की हर्षित भूमि का एक २ रजकण साक्षी दे रहा है । उपरोक्त तीनों बातों की परा काष्टा तो है ही किंतु साथ ही प्रभावक आचार्य दर्शन, श्रुति श्रवण, व्याख्यान लाभ और धर्भ प्रभावना रूप उस्सवादि के द्वारा इस तप की और इस गांव की और भी अधिक मात्रा में शोभावृद्धि हुइ है । कहीं तप की झडियां लग रही हैं तो कहीं दर्शनों का लाभ लूटा जा रहा है तो कहीं धर्म प्रभाबना हो रही है तो कहीं उत्सवादि मनाये जा रहे हैं आदि विविध धर्मोत्सवों से इस भूमि की रमणीयता लोगों के हृदय को विशेष आकर्षित करने वाली हो रही है। वर्तमान में इसके साज को देख कर इसको धर्म स्वर्ग भूमि कही जाय तो कोइ अत्युक्ति नहीं होगी।
यह तो एक शास्त्र सम्मत सिद्धान्त है कि तप ही संसार में आत्मकल्याण और निर्जरा का मुख्य हेतु है इसके प्रभाव से कितने ही महा पुरुषोंने आत्मकल्याण किया है और वर्तमान में भी कर रहे हैं। अर्जुनमाली जैसे घृणित